विधानसभा चुनाव में मतदान के बाद अब भाजपा और कांग्रेस की नजर मालवा निमाड़ पर है. यहां की 66 सीटें किसी भी दल की सरकार बनाने में निर्णायक मानी जाती है. वर्तमान में इनमें से 57 सीटें भाजपा के पास है. इस चुनाव में मालवा-निमाड़ में किसानों की समस्याओं से जुड़े मुद्दे हावी रहे. यही वजह थी कि दोनों दलों ने किसानों को लुभाने के लिये अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्रों में कर्ज माफी और बोनस जैसे कई वादे किये.
राजनीति के पंडित कहते हैं कि मध्यप्रदेश में सत्ता की चाबी मालवा-निमाड़ के मतदाताओं के पास रहती हैं. इन क्षेत्रों की 66 विधानसभा सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले दल को ही बहुमत मिलता है. फिलहाल मालवा- निमाड़ की 57 सीटों पर काबिज भाजपा को भरोसा है कि इस इस बेल्ट से सीटें भले ही कम हो जाए, किन्तु सरकार बनाने लायक संख्या तो आ ही जाएगी. दूसरी तरफ कांग्रेस का गणित कहता है कि मालावा-निमाड़ के किसान उसकी सत्ता में वापसी करवाएंगे.
मालवा-निमाड़ में इस बार किसान बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरे हैं. किसानों के असंतोष का लावा वर्ष 2017 में आंदोलन के रूप में फूटा था. उस वक्त मालवा के मंदसौर जिले में पुलिस फायरिंग में पांच किसानों की मौत और लाठीचार्ज में घायल एक अन्य की बाद में मृत्यु ने भाजपा सरकार को बेकफुट पर ला दिया था.
एक-एक करोड़ के मुआवजे से भी बात नहीं बनी तो सरकार को भावांतर भुगतान जैसी योजनाएं लानी पड़ी, जिसका कुछ लाभ किसानों को मिला, लेकिन व्यवस्थागत खामियों के चलते बिचौलियों ने मोटा माल कमा लिया. सरकार किसानों को पुचकारती रही और विपक्ष भड़काता रहा. नतीजा यह रहा कि एक वर्ष में ही चुनाव आते- आते किसानों की समस्याएं, गोलीकांड, कर्ज जैसे मसले नेताओं के भाषणों और रणनीति में छा गए.
यही वजह रही कि कांग्रेस ने किसानों के असंतोष को चुनाव में भुनाने के लिये दस दिनों में कर्जमाफी का वादा कर बड़ा दांव खेला तो भाजपा ने भी हर किसान को उपज पर बोनस की लुभावनी घोषणा कर डाली. अब देखना यह है कि मालवा-निमाड़ के किसानों को भाजपा कितना अपना बना पाई और कांग्रेस किस हद तक किसानों को अपने पाले में लाने में कामयाब रही. चुनावी नतीजे इस गुत्थी को सुलझाएंगे.
मंदसौर से महेंद्र जैन