केन्द्र की मोदी सरकार ने चुनावी साल 2018-19 को ध्यान में रखते हुए खरीफ की सभी 14 फसलों के समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना की वृद्धि की है, जिससे किसानों को उनकी फसल की लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा समर्थन मूल्य मिलेगा. समर्थन मूल्य की प्रणाली पिछली कांग्रेस-यू.पी.ए. सरकारों ने प्रारंभ की थी और पूर्व की सरकारें हर साल समर्थन मूल्यों में 150 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि करती रही.
लेकिन मोदी सरकार ने उसके पिछले 4 साल में समर्थन मूल्यों में कोई वृद्धि नहीं की और अब चुनावी और उसके 5 वर्षों के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में सर्वाधिक डेढ़ गुना से ज्यादा वृद्धि कर दी.
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा के चुनाव प्रचार में यह वादा किया था कि वह फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य दिलायेगी और 4 साल बाद फरवरी 2018 में पेश केन्द्रीय बजट में उसे पूरा करने की घोषणा की थी जिसे अब जुलाई 2018 में पूरा किया गया है. इस वृद्धि को केन्द्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह आजाद भारत की सर्वाधिक वृद्धि है. समर्थन मूल्य में पहली बार इतनी वृद्धि की गई है.
किसान देश का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है. लेकिन उसे कभी सही कीमत नहीं मिली. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने इस वृद्धि के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया है.
नये समर्थन मूल्यों के प्रति क्विंटल धान में 200 और 160 रुपये किया गया और रागी में सर्वाधिक वृद्धि हुई है. इसेे रुपये 997 बढ़ाकर 2897 रुपये किया गया है. यह वृद्धि ज्वार में 730 रुपये क्विंटल बाजरा में 525 रुपये, मक्का 275 रुपये, दाल अरहर 225 रुपये, मूंग 1400 रुपये, उड़द 200 रु. मूंगफली 440 रुपये, सूरजमुखी 1288 रुपये, सोयाबीन 349, तिल्ली 949, काला तिल 1827, कपास 1130 रुपये हो गया है.
समर्थन मूल्य बढ़ाते रहने से अनाज, दालें, खाद्य तेलों का भी महंगा होना लाजमी है और उसका प्रभाव सभी घरों की रसोई पर भी पड़ता और बढ़ता जा रहा है. यह लोगों के भोजन पर ढका मुन्दा व परोक्ष टैक्स है जो लगातार बढ़ता जा रहा है.
फसलों की लागत बढऩे से रोक दी जाए तो समर्थन मूल्य भी एक बिन्दु पर स्थिर किये जा सकते हैं. अभी हो यह रहा है कि एक तरफ फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाते हैं तो दूसरी ओर रासायनिक खादों पर मूल्य बढ़ाकर कृषि लागत को बढ़ा देते हैं. यही हाल कीटनाशकों की कीमतों में भी इजाफा होते रहने से है.
दूसरी ओर इनके निर्यात बाजार पर भी बढ़े मूल्यों का असर अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा बाजार में भी विपरीत हो जाता है. कपास भारत का एक बड़ा निर्यात आइटम है. भारत में कपास का लागत मूल्य प्रति गांठ का 3433 रुपये आंका गया है. इसका समर्थन मूल्य कपास मध्यम 4020 रुपये से बढ़ाकर 5150 रुपये और कपास लम्बा रेशा का मूल्य 4320 रुपये से बढ़ाकर 5450 रुपये कर दिया गया है.
भारत कपास का सर्वाधिक निर्यात चीन को करता है और इससे चीन में बढ़ता जा रहा ट्रेड बेलेन्स काफी हद तक कम हो जाता है. लेकिन यदि उसे भारत के भाव माफिक नहीं पड़ते तो यह प्रतिस्पर्धा में अमेरिका से कपास लेने लगता है और इसकी वजह से देश में कपास का स्टाक बढऩे से कपास के भाव बहुत ज्यादा तेजी से गिर जाते हैं. महाराष्ट्र के विदर्भ और मध्यप्रदेश के निमाड़ की कपास की दूसरे देशों में मांग काफी रहती है. लेकिन भावों में प्रतिस्पर्धा अमेरिका से हो जाती है.
चावल के भावों में भी 200 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है. भारत का बासमती और अन्य नामों का चावल भी अरब देशों में काफी निर्यात होता है. लेकिन भावों में प्रतिस्पर्धा म्यानमार, थाईलैंड, कम्बोडिया आदि देशों से होती है. अरब देशों को हमारा चावल इसलिये भी सस्ता पड़ता है कि वे भारत के बहुत पास है. इस समय अमेरिकी कपास के दाम 145 से 150 रुपये प्रति किलो है और भारत में इस समय इसका भाव समर्थन मूल्य बढऩे के बाद भी 132 से 135 रुपये प्रति किलो है जो अभी तक ठीक है.
समर्थन मूल्य की एक बड़ी कमजोरी यह है कि सरकार निर्धारित कोटा ही खरीदती है. बाद में निजी व्यापार खरीदी में आता है- वह कभी भी समर्थन मूल्य के बराबर भाव नहीं होता. व्यवस्था होनी चाहिए कि सभी जगह एक से भाव रहें.