प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में भाजपा संसदीय दल की बैठक में अपनी पार्टी के सांसदों को नसीहत देते हुए साफ शब्दों में कहा कि वे अपना व्यवहार सुधारें अन्यथा जनता उन्हें बाहर कर देगी. प्रधानमंत्री इस बात से नाराज थे कि भाजपा सांसद सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेते और अनुपस्थित रहते हैं. उन्होंने सभी सांसदों को संसद में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने का निर्देश देते हुए कहा कि बार-बार बच्चों की तरह आप लोगों को एक ही बात कहना ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि आप लोग अपने-अपने व्यवहार में परिवर्तन लाइए, नहीं तो परिवर्तन हो जाता है. बैठक में प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा वह केवल भाजपा सांसदों के लिए ही नहीं दूसरे दलों के सांसदों के लिए भी महत्वपूर्ण है. भाजपा को कार्यकर्ता आधारित दल कहा जाता है, लेकिन पार्टी के सांसद कार्यालय जाने में परहेज करते हैं उनका पार्टी की जिला इकाई और निचली इकाइयों से तालमेल नहीं रहता. कई सांसदों को तो पता ही नहीं रहता कि भाजपा में पदाधिकारी कौन-कौन हैं. दूसरे दलों की स्थिति भी इससे अलग नहीं है. इस मामले में साम्यवादी दल अपवाद हैं. जहां के सांसद नियमित रूप से पार्टी के दफ्तर जाते हैं और कार्यकर्ताओं तथा जनता से मिलते हैं. पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन लंबे समय तक इसलिए चल पाया क्योंकि मार्क्सवादी पार्टी ने वहां ऐसा तंत्र विकसित किया था जिसके कारण वार्ड स्तर पर नियमित रूप से पार्टी के कार्यालय खुलते थे वहां जिम्मेदार पदाधिकारी मौजूद होते थे जो जनता की समस्याओं को हल करते थे. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसदों और अन्य जनप्रतिनिधियों के लिए अनिवार्य था कि वे नियमित रूप से पार्टी के दफ्तर में बैठें और कार्यकर्ताओं की समस्या हल करें. 70 के दशक में पश्चिम बंगाल कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव कामरेड सरोज मुखर्जी और कामरेड प्रमोद दासगुप्ता इस मामले के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं. यह दोनों अपने दल के कार्यकर्ताओं में बेहद लोकप्रिय थे. प्रमोद दासगुप्ता के निधन के बाद उनकी शव यात्रा में 5 लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे. यह उनके लोकप्रियता का परिचायक है जबकि प्रमोद दासगुप्ता किसी भी सरकारी पद पर नहीं रहे और ना ही उन्होंने कोई चुनाव लड़ा. बहरहाल,संसद में कम उपस्थिति की समस्या केवल भाजपा की नहीं है सभी दलों की है. कई सांसद तो ऐसे हैं जो पूरा सत्र गुजर जाने के बाद एक शब्द नहीं बोलते हैं. जनता अपने सांसद को यह सोच कर भेजती है कि वह उनके क्षेत्र की समस्या हल करेगा और उनकी मुखर आवाज बनेगा, लेकिन अधिकांश सांसद अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते जबकि अधिकारों के प्रति जागरूक रहते हैं. अनेक सांसद अपने क्षेत्र में संपर्क करना भी भूल जाते हैं. कई तो ऐसे हैं, जो दो दो साल तक जनता को अपना चेहरा तक नहीं दिखाते.सांसदों को विकास कार्यों के लिए सांसद निधि के रूप में लाखों रुपए प्रति वर्ष दिए जाते हैं जिससे वे अपने क्षेत्र में विकास कार्य कर सकें लेकिन कई सांसद यह पैसा भी खर्च नहीं कर पाते. उनकी सांसद निधि लैप्स हो जाती है. जाहिर है ऐसे सांसदों को जनता का प्रतिनिधि कहलाने का अधिकार नहीं है. प्रधानमंत्री ने इस संबंध में महत्वपूर्ण बात कही. उन्होंने कहा कि सभी सांसदों को खेल स्पर्धाएं आयोजित करनी चाहिए जिससे युवाओं में उनका संपर्क रहे और देश में खेलों के प्रति जागरूकता बढे.इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि अपने संसदीय क्षेत्र में पद्म पुरस्कार प्राप्त व्यक्तियों से भी नियमित संपर्क में रहना चाहिए. यह लोग अपने अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं. ऐसे में उनसे संवाद करने से सांसद भी अपडेट रहते हैं और उन्हें समस्या की जानकारी रहती है. संसदीय लोकतंत्र की मजबूती और परिपक्वता तभी है जब सांसद गण अपनी जिम्मेदारी को समझें. प्रधानमंत्री होने के बावजूद नरेंद्र मोदी लगातार काशी के विकास के लिए चिंतित रहते हैं और वहां जाकर आम कार्यकर्ताओं से और पदाधिकारियों से मिलकर उनके साथ बैठते हैं. प्रधानमंत्री का यह आदर्श सभी सांसदों ने अपनाना चाहिए.