ताकि न बने नया बूचा

युद्ध हमेशा अपने साथ विभीषिका भरी समस्याएं लेकर आता है और जब एक महाशक्ति का अपने पड़ोसी छोटे देश से युद्ध होता है तो ऐसी युद्धजनित समस्याएं और अधिक बढ़ जाती हैं, बूचा नरसंहार जैसी दिल दहला देने वाली घटनाएं सामने आती हैं। कह सकते हैं कि प्रत्येक बड़ा युद्ध अपने पीछे कई बूचा और मारियापोल छोड़ जाता है। यूक्रेन और रूस के बीच पिछले डेढ़ महीने से युद्ध चल रहा है। तस्वीरें साफ बता रही हैं कि रूसी सेना ने राजधानी कीव के पास मौजूद बूचा शहर में सामूहिक तौर पर कत्लेआम मचाया है। रूसी सेना ने बूचा में कई निर्दोष लोगों की जान ली है। रूस भले ही इसे पश्चिमी प्रोपेगैंडा बताकर खुद को बेकसूर माने लेकिन सोशल मीडिया में वायरल हुई तस्वीरों में सडक़ पर बिखरीं लाशों को साफ देखा जा सकता है। इन लाशों में किसी के हाथ बंधे हैं तो किसी के सिर पर गोली के निशाना साफ देखे जा सकते हैं। बूचा के लोगों का दावा है कि तस्वीर में दिख रहे लोग बूचा के स्थानीय हैं और उन्हें रूसी सेनाओं ने मारा है।

1939 से 1945 तक चले दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भयंकर तबाही मची थी। इस युद्ध में लगभग साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी जिसे देखते हुए भविष्य में किसी युद्ध के दौरान दूसरे विश्व युद्ध जैसी तबाही फिर से न हो इसलिए 1949 में जेनेवा कन्वेंशन किया गया था, इस कन्वेंशन के तहत युद्ध के नियम बनाए गए थे जिसमें युद्धबंदियों की सुरक्षा व युद्धक्षेत्र में नागरिकों को न मारने का प्रावधान प्राथमिकता से शामिल था। हालांकि रूस इस जिनेवा कन्वेंशन के प्रति शुरू से ही उदासीन रहा और विश्व बिरादरी के दवाब के बाद करीब पांच वर्ष बाद ही जिनेवा कन्वेंशन में शामिल हुआ था। बूचा नरसंहार की हकीकत सामने आने के बाद अब अहसास होता है कि रूस वैश्विक स्तर पर युद्ध नियमों के प्रतिस्थापन के प्रति अनिच्छुक क्यों था।

सात दशकों तक रूस में कम्युनिस्ट शासन रहा जो खुद को सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधि मानता था। रूस महाशक्ति तो बना लेकिन देश में दमघोंटू माहौल रहा। अभी भी स्टालिन के निर्दयी शासन के किस्से याद कर पुरानी पीढ़ी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 90 में गोर्बाचेव के दौर में रुस ने जब कम्युनिज्म से निजात पाई तो उम्मीद जगी थी कि स्टालिन की खूनी परंपरा सदा के लिए दफन हो गई है लेकिन बूचा नरसंहार जाहिर करता है कि पुतिन भी स्टालिन के ही रास्ते पर चल रहे हैं। इस नरसंहार ने दुनिया भर में रूस की साख को गहरा धक्का पहुंचाया है। पश्चिमी देशों ने न सिर्फ रूस पर प्रतिबंध और कड़े कर दिए हैं बल्कि रूसी राजदूतों को भी निष्कासित कर दिया है। पुतिन को वार क्रिमीनल ठहराते हुए उन पर मुकदमा चलाने व रूस को मानवाधिकार आयोग से निकालने की भी मांग उठी है।

इस पूरे मामले में रूस के पक्ष को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। रूस यही कह रहा है कि जब उसकी सेना ने बूचा छोड़ा, तब वहाँ के मेयर ने सब ठीक बताया था लेकिन बाद में यूक्रेन ने पश्चिमी देशों की मदद लेकर बूचा शहर में वायरल हो रही तस्वीरों को मैनेज किया है। रूस के मुताबिक यूक्रेन गांवों में फिल्मी अंदाज में शूटिंग कराकर आमने-सामने की गोलीबारी में मारे गए लोगों की लाशों को खुद ही वीभत्स रूप दे रहा है। हालांकि रूस का यह स्पष्टीकरण अविश्वसनीय लगता है। लिहाजा बूचा नरसंहार की स्वतंत्र एजेंसी से निष्पक्ष जांच कराने की जरूरत है। भारत ने भी बूचा से आई खबरों को चिंताजनक मानते हुए निष्पक्ष जांच की बात कही है। हमारा भी यही मत है कि विश्व जनमत ऐसी नीतियों पर काम करे कि भविष्य में कोई नया बूचा नहीं बने।

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