जलवायु में हो रहे निरंतर परिवर्तन से दुनिया पर्यावरण संतुलन को लेकर चिंतित हो गई है. विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यदि भविष्य में हमें चैन से जीवित रहना हैं, तो अपनी जीवनशैली को बदलना होगा.दरअसल, पर्यावरण को लेकर जितनी जागरूकता हमारे देश में होनी चाहिए उतनी अभी तक आई नहीं है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व मंच पर हमेशा कहा है कि भारत इस संबंध में सभी निर्देशों का पालन करेगा और अपनी ओर से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का प्रयास करेगा. इसके लिए प्रधानमंत्री ने पॉलिथीन मुक्त देश बनाने की घोषणा की है. इसके लिए सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन भी लगाया गया है. दूसरे चरण में अन्य कदम उठाए जाएंगे. दरअसल, हमे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करनी ही होगी. अगर तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तक सीमित करना है तो हमें उत्सर्जन में 43 प्रतिशत तक की कटौती करनी होगी.अगर ऐसा करने से चूके और तापमान में 1.5 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई तो असमय अकाल, सूखा, बाढ़ और जंगल में आग की घटनाओं का सामना करना पड़ेगा. समुद्र का तापमान बढ़ेगा और कई शहरों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा. इसका सबसे बुरा और जानलेवा असर समुद्री प्राणियों पर भी पड़ेगा.जलवायु परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी समिति की रिपोर्ट के अनुसार अगर सभी देश जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा भी करते हैं, तब भी वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 2010 के स्तर की तुलना में 2030 तक 10.6 प्रतिशत की वृद्धि होगी.दरअसल,संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी की रिपोर्ट में यह भयावह तस्वीर ऐसे समय में सामने आई है. जबकि छह नवंबर से मिस्त्र के शर्म-अल-शेख में काप 27 (कान्फरेंस आफ पार्टीज) जलवायु शिखर सम्मेलन होने जा रहा है.इसमें जमा होने वाले दुनियाभर के नेता विचार करेंगे कि किस तरह धरती के तापमान को बढऩे से रोका जाए, ताकि पृथ्वी आग का गोला नहीं बनने पाए.
आइपीसीसी के अनुसार 1850-1900 की अवधि को पूर्व-औद्योगिक वर्ष के रूप में रेखांकित किया गया है और इसे बढ़ते औसत वैश्विक तापमान की तुलना के आधार के रूप में लिया गया है. ग्लासगोव में हुए पिछले शिखर सम्मेलन में सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन संबंधित अपनी योजनाओं को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई थी,लेकिन सच्चाई यह है कि भारत, इंडोनेशिया, बोलिविया और उगांडा समेत मात्र 24 देशों ने ही अपनी नवीन योजना सौंपी है.इन देशों ने 2030 तक उत्सर्जन में 31.89 प्रतिशत तक कटौती करने का भरोसा दिया है. बहरहाल,वैश्विक स्तर पर अगर उत्सर्जन कटौती के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए गए तो वर्ष 2100 तक तापमान में 2.5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है.अगर ऐसा हुआ तो उसके विनाशकारी परिणामों का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है.भारत में खराब हवा और बढ़ती गर्मी मौत का कारण बनती जा रही है. बीते दो दशक यानी 2000-2004 से 2017-2021 के दौरान गर्मी के चलते होने वाली मौतों में 55 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.ऐसा नहीं है कि इन मौतों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसके लिए हवा की गुणवत्ता में सुधार करना होगा.यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2050 तक दुनिया का लगभग हर बच्चा लू की चपेट में होगा.मौजूदा समय में 55.9 करोड़ बच्चे कभी न कभी अत्यधिक गर्मी की चपेट में आते हैं. बहरहाल,यह जाना माना तथ्य है कि गैस उत्सर्जन के लिए सबसे अधिक विकसित देश जिम्मेदार हैं,लेकिन सबसे अधिक गैर जिम्मेदाराना रवैया यही विकसित देश दिखा रहे हैं. जबकि भारत सहित अनेक विकासशील देशों ने इस संबंध में गंभीर उपाय करना प्रारंभ किए हैं.इसलिए विकसित देशों ने नसीहत देने की बजाय अपनी जिम्मेदारी निभाने पर ध्यान देना चाहिए. भारत में भी पर्यावरण जागरूकता के लिए इस विषय को स्कूली और महाविद्यालय पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए. जब तक जनता का सहयोग इस अभियान में नहीं मिलेगा, तब तक लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकेगी. इसलिए सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तरों पर ठोस प्रयास आवश्यक है.