ग्वालियर – चंबल डायरी
हरीश दुबे
लगता है कि इस बार ग्वालियर मेला पर एक के बाद एक संकट गहरा रहे हैं। कल पांच जनवरी को ग्वालियर मेला का उदघाटन होना था लेकिन आज शाम सिंधिया का दौरा कैंसिल होने के साथ ही ग्वालियर मेला का उदघाटन जलसा भी मुल्तवी हो गया। इस तरह आगाज के पहले ही मेला का बिस्मिल्ला बिगड़ गया है। इससे पहले तमाम मुश्किलों के बाद आरटीओ टैक्स में छूट मिली, कोरोना की नई लहर की उहापोह में फंसे व्य्यापारियों ने देरी से अपने शोरूम बनाना शुरू किया और फिर मेला से मुतालिक जरूरी इंतजाम पूरे करने में आर्थिक कड़की आड़े आ गई। मेला की गुल्लक खाली है और प्राधिकरण तमाम इंतजामात करने के लिए व्यापारियों से मिलने वाले दुकान किराए और बिजली-पानी की एडवांस रकम पर निर्भर है। इस बार मेला का सांस्कृतिक कैलेंडर फीका-फीका सा है। कोई भी नामी कलाकार तशरीफ नहीं ला रहा है। कुछ फ्री के स्थानीय कलाकारों और कुछ धन-मोह से दूर समर्पित प्रवृत्ति के कला तपप्वियों की दम पर मेला की महफ़िल सजाने की तैयारी है। बड़े महाराज के वक्त मेला ने सुनहरे दिन देखें हैं, मेला की बरक्कती में ज्योतिरादित्य ने भी कसर बाकी नहीं छोडी लेकिन यह कहने में हर्ज नहीं कि ग्वालियर की संस्कृति का प्रतीक इस आयोजन की शान अब पहले जैसी नहीं रही।
नाथ के लिए फीडबैक जुटा रहे बालसखा
माधवराव सिंधिया से बचपन की मित्रता के चलते बालेंदु शुक्ल का एक नाम बालसखा भी है। ग्वालियर की सियासत में उन्हें इसी नाम से जाना-पहचाना जाता रहा है। अर्जुन, वोरा, श्यामा से लेकर दिग्विजय तक की सरकारों में करीब डेढ़ दशक तक वजनदार महकमे संभाल चुके बालेंदु इस वक्त कांग्रेस में कमलनाथ के लिए फीडबैक जुटाने का काम कर रहे हैं। बालेंदु के घर रोज ही मजमा लग रहा है। किसी दिन अंचल के सीनियर नेताओं का तो किसी दिन मजदूर नेताओं और मायनोरिटी का तो किसी दिन खबरनवीसों का। बालसखा का सबसे एक ही सवाल रहता है कि दस महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कितने पानी में है। वे अपनी बात भी रखते हैं लेकिन “ऑफ दि रिकॉर्ड” के टैग के साथ। सिंधिया से अपनी मित्रता के समय के किस्से भी सुनाते हैं, यह भी बताते हैं कि एक चुनाव से पहले माधवराव ने किस तरह सीएम बनने का ऑफर स्वीकारने से मना कर दिया था। खास बात यह कि जय-पराजय के कई दौर देख चुके बालसखा खुद को टिकट की स्पर्धा से दूर बताते हैं। वे जो फीडबैक ले रहे हैं, वह भोपाल भी पहुँच रहा है।
भितरवार में टिकट की महाभारत…
भितरवार सीट पर पिछले कई बार से कांग्रेस के लाखन सिंह यादव जीतते आ रहे हैं। वे नाथ की कैबिनेट में भी रह चुके हैं। उन्हें कभी मोहन सिंह राठौड़ से टिकट की प्रतिद्वंदता का सामना करना पड़ता था लेकिन राठौड़ के महाराज संग भाजपा में चले जाने के बाद कांग्रेस में उनके लिए मैदान साफ था, वे लगातार दो बार अनूप मिश्रा जैसे दिग्गज को चुनाव हरा चुके हैं। इस बार भी लाखन सिंह के टिकट में कोई बाधा नहीं है लेकिन ग्वालियर कांग्रेस में कई जिम्मेदारी संभाल रहे धर्मेंद्र शर्मा द्वारा भी टिकट के लिए ताल ठोक देने से लाखन के लिए कुछ असहज स्थिति बन सकती है। पता चला है कि धर्मेंद्र शर्मा एक दो रोज में भोपाल जाकर कमलनाथ से टिकट की फरियाद करेंगे। धर्मेंद्र भितरवार के ही निवासी हैं। उधर भाजपा में टिकट के लिए मोहन सिंह राठौड़ और लोकेंद्र पाराशर के बीच द्वंद है। मौका मिला तो अनूप भी किस्मत आजमाने तैयार हैं।
मलमास बीतने का इंतजार…
१५ जनवरी को मलमास खत्म हो रहा है। शहर की राजनीतिक वीथिकाओं में अटकलें लगाई जा रही हैं कि मलमास खत्म होते ही सत्ता प्रतिष्ठानों को प्रभावित करने वाले कुछ बड़े फैसले हो सकते हैं। पदाभिलाशी नेता छह माह के लिए ही सही, निगम अध्यक्षी का ताज पहनने के लिए बेकरार हैं। मिनिस्ट्री में भी बदलाव हो सकते हैं, कुछ के पर कतरे जा सकते हैं तो कुछ के वजन में इजाफ़ा मुनासिब है। नेताओं को १५ जनवरी गुजरने का इंतजार है।