भोैगौलिक स्थिति है चुनौती पूर्ण
महेश राठौर/हरिशंकर पंवार
झाबुआ, भीलांचल में जल संकट की पदचाप सुनाई देनी लगी है. कई गांवों में अभी से पानी की किल्लत के आसार बनने लगे है. पेयजल के मुख्य स्त्रोत हेंडपंप हॉपने लगे है. कुओं के पेट तेजी से खाली हो रहे है और तालाबों के पैंदे कुछ फिट पानी ही समेटे हुए है, ऐसे में अंचल में भीषण जल संकट जल्द ही दस्तक दे सकता है, ऐसी स्थितियां बन गई है. इस वर्ष अल्पवर्षा के कारण भूमिगत जल स्तर तेजी से गिर रहा है.
झाबुआ-अलीराजपुर जिलों के कई गांव आने वाले दिनों में पेयजल उपलब्धता के मामले में डार्कजोन में चले जायेंगे ऐसे हालात बन रहे है, जबकी प्रशासन और जन प्रतिनिधि अभी भी इस दिशा में कुछ खास कर पा रहे हो ऐसा दिखता नही है. दोनों जिलों के अनेक स्थानों पर स्थितियां वाकई गंभीर हो रही है.
पेटलावद क्षेत्र में लगभग एक दर्जन तालाब ऐसे है जहां इतना पानी नहीं बचा है कि क्षेत्रवासी आने वाली गर्मियां आसानी से काट सके. अजबबोराली, पंपावती, असालीया, उन्नाई, दाढिया, गोठानिया, महुडीपाडा, सामली, कागदी आदि अनेक जलाशय दम तोडऩे के करीब पहुंच गये है.
ऐसे ही हालात थांदला, झाबुआ, रानापुर, रामा, पारा, मेघनगर सहित अलीराजपुर जिलों के विभिन्न विकासखंडों में भी जलाशय बेहद गंभीर अवस्था में है. इनमें भरा कुछ फुट पानी क्षेत्र की जनता की जरूरतों को कुछ हफ्तों पूरी कर पाय ऐसा भी नहीं लगता.
झाबुआ-अलीराजपुर जिलों में भोगौलिक स्थिति ऐसी है कि वर्षाजल ठहरता नहीं बल्की सरपट दौेडक़र बह जाता है.ऐसे में जल संचय के सघन उपायों के बगैर भूगर्भीय जल स्तर को ऊंचा उठा पाना संभव नहीं हो पाता. बीते समय में पानी, मिट्टी रोकने के जितने उपाय किये गये वे नाकाफी साबित हो रहे हैं. जल ग्रहण मिशन के तहत बनाये गये चेकडेम, निस्तार तालाब, डोह, डगआउट, आरएमएस आदि जल संरचनाएं घटिया गुणवत्ता के कारण सौ प्रतिशत उपयोगी साबित नहीं हो पा रही हैं.
फलत: भूमिगत जल पुनर्भरण का काम भी ठीक ढंग से नहीं हुआ है, यही वजह है कि जनवरी मध्य में ही कई हैंडपंप हाथ खड़े करते दिखाई दे रहे हैं. झाबुआ-अलीराजपुर जिलों में अनेक वर्षों तक पहले कांग्रेस के बाद में भाजपा सरकार ने अभियान चलाकर जल संचय के कार्य प्राथमिकता के आधार पर किया परंतु भ्रष्टाचार की दीमक कार्यक्रम क्रियांवयन एजेंसियों की जड़ों को खा गई.
संभवत: इसीलिए गुणवत्ता विहीन कार्य निष्पादित हुए, नतीजा अल्पवर्षा के बाद जल संकट भुगतने के लिए आम लोगों को बाध्य होना पड़ता है.
आधुनिक खेती जल संकट की बड़ी वजह
जल संकट की संभावित आहट सबसे ज्यादा उस पेटलावद क्षेत्र में सुनाई देने के संकेत हैं जहां तथाकथित आधुनिक खेती जोर-शोर से की जाती है. टमाटर, मिर्च, हाईब्रीट सब्जियां, बीटी कपास आदि फसलें बेतहाशा पानी की मांग करती हैं.
फलस्वरूप नलकूप, कुएं तथा तालाब का अधिकांश पानी सिंचाई के लिए इस्तेमाल हो जाता है और पेयजल की समस्या गांव, कस्बों के नागरिकों का चैन लीलने लगती है. बेहताशा रासायनिक उर्वरकों का उपयोग और जहरीले कीटनाशकों के प्रयोग के बाद खेती में पानी की अत्यधिक जरूरत ने क्षेत्र में जल संकट को आमंत्रित किया है.
अल्पवर्षा की स्थिति ने इस समस्या को और भयावह बना दिया है, यदि समय रहते इस समस्या से निजात पाने के ठोस और सहभागी उपाय नहीं किये गये तो जल संकट क्षेत्र को उजाड़ बना सकता है.
इस समस्या से निपटने के लिए सघन वनीकरण, जल आच्छादन कार्यों में पारदर्शिता तथा ग्रामीणों के साथ पानी बचाने की जागरूकता फैलाने के साथ ही गांव में जल बजट बनाने के कार्य को वैज्ञानिक ढंग से क्रियांवित करने में जन प्रतिनिधियों और सरकारी नुमाईंदों को ईमानदार पहल करना होगी.
जल स्वावलंबन क्यों है सपना
पानी बचाने के कार्य को प्रतिवर्श प्रशासन उत्सव की तरह करता है, परंतु यह सब एक भव्य किस्म की अदायगी से अधिक कुछ नही होता.दरअसल राजनैतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक दूरदर्शिता के अभाव में पानी बचाने का काम कागजों पर ही अपना प्रभाव छोड़ पाता है.
धरातल पर उसके परिणाम नही मिलते है. नतीजतन करोड़ों रूपया खर्च करने के बाद भी गांव में पेयजल विस्तार और सिचांई आदि की जरूरतों के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी नही मिल पाता. प्रतिवर्ष दर्जनों की संख्या में जल संरचनाओं का निर्माण होता है, परंतु पानी बचाना अभी भी एक ऐसा दुसाध्य कार्य है.