ब्रिटेन का राजनीतिक जीवन और क्रियाकलाप इन दिनों जनमत और संसद मत के परस्पर विरोधी टकराव से पूरा राष्ट्र दुविधा में आ गया है. इस स्थिति से कैसे निकला जाए.
कई वर्षों पूर्व जब यूरोप में सभी राष्ट्रों ने मिलकर यह तय किया कि यूरोप के सभी राष्ट्रों की एक राजनैतिक संस्था यूरोपीय यूनियन के नाम से बनायी जाये उसमें ब्रिटेन भी पूरे उत्साह से शामिल हो गया. कुछ समय बाद यूनियन को और सघन व मजबूत करने के लिये यह निर्णय लिया गया कि यूरोपीय यूनियन के सभी राष्ट्रों की एक ही मुद्रा ‘यूरो’ के नाम से रखी जाए. इसमें सभी राष्ट्रों शामिल हो गये. और संयुक्त ‘यूरो’ चलन में आ गयी, लेकिन ब्रिटेन इस मुद्रा यूनियन में शामिल नहीं हुआ और उसने अपनी प्रचलित मुद्रा ‘पौंड’ को जारी रखा.
कालान्तर में ब्रिटेन की जनसंख्या का एक बड़ा भाग इस विचार का हो गया कि ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन से अलग हो जाना चाहिए और देश का एक बड़ा वर्ग इस पर विचार कर भी रहा कि ब्रिटेन को यूनियन में बने रहना चाहिए. इस पर राष्ट्र में जनमत संग्रह (रिफरेन्डम) हुआ. इस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री डेविड कामरान इस मत के थे कि ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन में रहना चाहिए. लेकिन जनमत संग्रह में बहुत ही कम अंतर से यह जनादेश आया कि ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन से हट जाना चाहिए.
प्रधानमंत्री श्री कामरान को जनादेश के अनुसार यूरोपीय यूनियन में जाकर यह कहना पड़ा कि ब्रिटेन उससे अलग होना चाहता है. यूरोपीय यूनियन ने भी अपने आत्मसम्मान में दृढ़ता दिखाते हुए फौरन ही स्वीकार किया और ब्रिटेन से कहा कि वह यूरोपीय यूनियन से बाहर चला जाए. इस प्रक्रिया में दो साल का समय लग रहा है और प्रक्रिया चल रही है.
श्री कामरान ने इसके बाद नैतिक आधार पद पर से इस्तीफा दे दिया. क्योंकि वे स्वयं यूनियन से हटने के विरुद्ध थे. उनके स्थान पर श्रीमती टेरेसा मै प्रधानमंत्री बनी जो इस विचार की है कि ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से हट जाए.
ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली में यह व्यवस्था भी है कि जनमत संग्रह का कोई भी फैसला उसी स्थिति में मान्य होगा जब उसे ब्रिटेन की संसद (हाऊस आफ कामन्स) भी स्वीकार करे. लेकिन यूरोपीय यूनियन से हटने का जनमत का फैसला जब संसद में आया तो संसद ने उसे खारिज कर दिया. इसका अर्थ यह हो गया कि ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से नहीं हटेगा. इस समय उसके वहां से हटने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और उसका हटना स्वीकार किया जा चुका है.
अब प्रधानमंत्री श्रीमती टेरेस के सामने भी यह स्थिति आ गयी है कि वे स्वयं तो इस पक्ष में है कि हटा जाए लेकिन अब संसद का यह फैसला हो गया कि अब न हटा जाए. इस स्थिति में संसद में विरोधी दल से लेकर पार्टी की टेरेसा सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ले आयी.
श्रीमती टेरेसा सरकार के विरुद्ध के यह प्रस्ताव तो 19 मतों से गिर गया और सरकार बच गयी लेकिन यूरोपीय यूनियन बने रहना उनके लिये बाध्यकारी बना हुआ है. अब श्री टेरेसा को या तो दूसरा जनमत संग्रह कराना होगा या अपने पद से त्यागपत्र देकर ब्रिटेन में नये चुनाव कराये जायेंगे.