इन्द्र-इन्द्राणियों ने भक्ति नृत्य कर की भगवान सिद्ध की आराधना
भोपाल, परमार्थी तो वह है जो सुख के समय भगवान का नाम लेता है दुख आने पर भगवान का नाम लेने वाला स्वार्थी होता है. एक-दूसरे की किस्मत कोई नहीं बना सकता और न ही हम किसी का भाग्य बदल सकते मनुष्य की किस्मत पुरुषार्थ से ही बनती है, राग द्वेष का परिणाम आता है तो कर्म आकर चिपक जाते हैं उसी प्रकार जैसे तेल लगे शरीर पर धूल चिपक जाती है, स्वयं के अच्छे-बुरे की मानसिकता ही कर्म बंध का कारण बनती है .
कोई भी इंसान किसी का अच्छा और बुरा नहीं कर सकता.यह उद्गार आज कुंथु सागर महाराज ने सिद्धचक्र महामण्डल विधान आराधना के दौरान टी.टी. नगर जैन मन्दिर में व्यक्त करते हुए कहा कि सद्आचरण परस्पर सहयोग की भावना कर्मों को सहनीय बनाकर कर्म सहन करने की क्षमता प्रदान करती है, किसी का अच्छा या बुरा और किसी को रूपवान या कुरूप बनाने में परमात्मा का कोई रोल नहीं होता. इन सबके कारण स्वयं हमारे द्वारा किये गये अच्छे या बुरे कार्य होते हैं.
मुनिश्री ने कहा कि अक्ल और हुनर को आपस में कभी नहीं बांटा जा सकता और तलवार से छाया को कभी नहीं काटा जा सकता, उसी प्रकार पाप और पुण्य को आपस में कभी नहीं बांटा जा सकता, तुम दान करोगे पुण्य तुम्हें ही मिलेगा बेटे को नहीं, बेटा भोजन करेगा तो पेट बेटे का भरेगा, दूसरों को सताने वाले को सुख साता नहीं मिलती जीवन में सुखी रहना चाहते हो तो इसका सबसे बड़ा नियम है स्वयं से पहले दूसरे के दुख को समझो और कहा भी है चलो मन्दिर या मस्जिद दूर है तो क्या किया जाए किसी राते हुए को हंसाया जाए और किसी परेशान की परेशानी दूर की जाए, दूसरों की बुराई और दोष देखना बुरी बला है अपनी बुराई और दोषों को देखना सबसे बड़ी कला है.
दिगम्बर जैन पंचायत कमेटी ट्रस्ट के मीडिया प्रभारी अंशुल जैन के अनुसार अष्टानिका पर्व में मुनिश्री कुंथु सागर महाराज के सानिध्य में श्री महावीर दिगम्बर जैन मन्दिर टी.टी. नगर में मूलनायक भगवान महावीर का अभिषेक मंत्रोच्चारित शांतिधारा करने का सौभाग्य विधान के प्रमुख पात्र बने सौधर्मेन्द्र सुनील जैन को प्राप्त हुआ. प्रतिष्ठाचार्य पण्डित राजेश तड़ा के निर्देशन में धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न हुए,
पानी व वाणी का छानकर उपयोग करें
वैज्ञानिकाचार्य श्री निर्भय सागर महाराज ने कहा भावना भक्नाशनी होती है भावना द्वारा हम भगवान व शैतान दोनों बन सकते है. जब हम जानवर का ध्यान करते है तो हमारी आत्मा का ज्ञानपयोग उसी आकार में ढल जाता है उसी प्रकार जब भगवान की अराधना करते है, ध्यान करते है तो हमारी आत्मा परमात्मा जैसी होना चाहिए उक्त उदगार सिद्ध चक्र महामण्डल विधान के अंतर्गत दानिश कुंज जैन मंदिर सभागार में व्यक्त किये.
प्रखर वक्ता आचार्य श्री ने कहा जीवन हमेशा पवित्र वाणी से बनाता है सुनने व सुनाने दोनों को अमल में लाने से कल्याण होता है उन्होने कहा मौन गले का हार और वचन पैर की पायल इसलिए घर को खुश रखना है तो बोली का जवाब गोली से मत देना जो व्यक्ति पानी व वाणी छानकर उपयोग करों सिद्ध चक्र विधान के सप्तम दिन 512 श्रीफल समर्पित किये गये .
रात्रि में राज दरबार लगाया गया जिसमें सौधर्म इन्द्र आदि इन्द्रो ने प्रश्न पूछे अष्टकमरियों ने भक्ति भाव नृत्य किया व धार्मिक शंकाओं का समाधान किया. दानिश कुंज के संरक्षक एवं अध्यक्ष एसके जैन संरक्षक ज्ञानचन्द्र जैन ने बताया 23 नवम्बर को भव्य रथ यात्रा निकाली जायेगी. जिसमें सौ धर्म इन्द्र, यज्ञनायक, कुबेर आदिन इन्द्र बगगियों व श्री जी रथ पर पर विराजमान रहेंगे.