मंदसौर: कोरोना काल में ऑक्सीजन के लिए लोग भटकते रहे। ऑक्सीजन के अभाव में कईयों की जिंदगी चली गई। इसका कारण है इंसान। कागजों पर करोड़ों रुपए के पौधे जिले में लग चुके हैं। जो पौधे लगे, उन्हें सुरक्षा और देखरेख के अभाव में या तो गाय खा गई या खुद ही पौधों ने दम तोड़ दिया। इधर वन क्षेत्र का रकबा कागजों पर तो बरकरारहै, लेकिन मौके पर हरियाली नजर नहीं आ रही। वन क्षेत्र को इंसान ही निगल रहा है। प्रकृति के चमत्कार को नमस्कार नहीं करने का परिणाम और भी ज्यादा कोरोनाकाल बता चुका है। अगर अभी भी सुधार नहीं आया तो स्थिति भयावह हो सकती है।
सिर्फ कागजों पर बरकरार है रकबा
जिले में वन क्षेत्र का रकबा कागजों पर तो बरकरार है पर मौके पर हरियाली नजर नहीं आ रही है। जिले में तो हालत यह है कि रेवास-देवड़ा क्षेत्र से लगे जंगलों में अच्छी खासी हरियाली को उजाड़कर एक कंपनी को 95 हेक्टेयर भूमि पवन चक्की लगाने के लिए दे दी गई। बदले में इतनी ही जमीन शामगढ़ क्षेत्र के हनुमंत्या मेंं दी गई है पर राजस्व की पथरीली भूमि होने से अभी यहां ठीक से पौधारोपण भी नहीं हुआ है। इतना घना वन लगाने में वहां सालों लग जाएंगे। वन विभाग के आकड़ों में भी 59,194 हेक्टेयर में फैले वन क्षेत्र के घनत्व में 3 प्रश तक की कमी बताई जा रही है। शहरी क्षेत्रों में लाखों रुपए खर्च कर पौधे लगाने के बाद भी सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाए हैं।
बीस साल से यही रकबा बरकरार
जिले में पिछले 20 सालों से वन क्षेत्र का रकबा 59,194 हेक्टेयर ही चला आ रहा है। इसमें 18 हजार हेक्टेयर तो अकेले गांधीसागर अभयारण में ही फैला हुआ है। कागजों पर वन क्षेत्र इतना ही चला आ रहा है लेकिन वन क्षेत्र के घनत्व में कमी आई है। वन क्षेत्र को घनत्व के आधार पर तीन भागों में बांटा गया है। 0.2 घनत्व वाला क्षेत्र ब?कर 42.68 प्रश से बढ़कर 42.76 प्रश हो गया है। इससे ज्यादा घनत्व वाले वन में पेडों की संख्या कम हो गई है। 0.2 से 0.4 घनत्व का क्षेत्र 43 प्रश से घटकर 40.92 प्रतिशत हो गया है। 0.4 घनत्व वाले वन क्षेत्र में 20 साल पहले 14.29 प्रतिशत था जो अब घटकर 13.98 प्रश रह गया है।
अच्छा-खासा जंगल उजाड़ा
केंद्र सरकार से विंड वर्ल्ड कंपनी के 55.2 मेगावॉट पवन उर्जा परियोजना के अनुबंध के बाद मंदसौर से लगभग 12 किमी दूर रेवास-देवड़ा क्षेत्र में 95.3825 हेक्टेयर वन भूमि देने के आदेश 19 जनवरी 2015 को प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने दिए थे। भूूमि पर होने वाले वन के नुकसान के लिए कंपनी ने 2 करो? 71 लाख 85 हजार रुपए जमा कराए है। जिसका उपयोग कटाई के बदले नए पे? लगाने पर किया जाना था।
कंपनी से किए गए अनुबंध में स्पष्ट लिखा है बहुत ज्यादा जरूरी होने पर ही वन अधिकारी की मौजूदगी में पेड़ काटे जाए पर जालसाजी करते हुए पूरे 95 हेक्टेयर वन भूमि पर कंपनी ने काटने के लिए कागजों में केवल 1249 पेड़ चिन्हित किए हैं जबकि इस क्षेत्र में 3-4 हजार तक पे? थे। इसके अलावा अनुबंध की खास बात यह भी थी कि नए वन लगाने के लिए राजस्व विभाग ने 95.3825 हेक्टेयर भूमि मंदसौर से 100 किमी दूर शामगढ़ तहसील के ग्राम हनुमंत्या में दी।
सिर्फ इतिहास बनाने की चाह
जुलाई 2014 में पौधे लगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में रिकॉर्ड दर्ज कराकर इतिहास बनाने का सपना देखा गया। 1.35 लाख पौधे लगाने का दावा किया गया। जिले में 101 जगहों पर पौधे लगाए गए। जिसमें 47 सरकारी विभागों के अलावा 48 निजी संस्थाओं को भी पौधे दिए गए। डाइट परिसर में 500 पौधे लगाए गए लेकिन सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाया। देखरेख के अभाव में एक भी पौधा नहीं चल पाया। यहीं स्थिति अन्य जगहों पर भी हुई।
सवा नौ लाख पौधे लगाने का दावा
2015 से 2019 तक पांच वर्षों में जिले के तीनों रेंज मंदसौर, गरोठ और भानपुरा में वन विभाग ने 9 लाख 39 हजार 870 पौधे लगाए गए हैं। विभाग का दावा है कि इनमें से करीब सात लाख पौधे जीवित हैं लेकिन हकीकत में स्थिति यह नहीं है। कागजों में भले ही पौधों से हरियाली फैल रही है, लेकिन हकीकत में 20 प्रतिशत पौधे भी पेड़ नहीं बन पा रहे हैं क्योंकि वन विभाग के जिम्मेदार पौधरोपण के बाद सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं। इसी के कारण कभी पशु पौधों को खा रहे हैं तो कभी खाद-पानी समय पर नहीं मिलने से सूख रहे हैं।
कई शासकीय भूमियों और स्कूल, कालेज परिसरों व कई स्थान ऐसे हैं, जहां कुछ वर्षो पहले पौधे रोपे गए थे, जो अब वहां से गायब हो गए हैं। कुछ समय पहले मंदसौर में राजीव गांधी महाविद्यालय मैदान को ग्रीन बेल्ट बनाया गया था। यहां पौधे भी रोपे थे। वर्तमान में वहां पौधे ही नहीं है। सबसे ज्यादा वर्ष 2018 में जिले में 2.77 लाख पौधे रोपे गए थे, 2019 में 2.71 लाख पौधे रोपे गए। इसके बाद 2020 में बजट के अभाव में पौधारोपण नहीं हुआ। इस इस साल पैसठ हजार हेक्टयर में उन्नतीस हजार पौधे लगाने का दावा किया गया है।