आदिवासी भाई-बहनों को अब नहीं रहा उजड़ने का डर
सतना : जिले के वन प्रांतर में रहने वाले एवं वनोपज और जंगलों से अपनी आजीविका चलाने वाले अनुसूचित जनजाति के भाई-बहनों को वन भूमि से अब उजड़ने का डर नहीं रह गया है। राज्य शासन ने वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत नियम बनाकर उन्हें वर्षों से काबिज वन भूमि का अधिकार पत्र दिया है। जिससे आदिवासी भाई-बहन जंगलों की अपनी काबिज भूमि पर निर्भय होकर खेती-किसानी से अपनी आजीविका चला रहे हैं।
सतना जिले में जिला स्तरीय वन अधिकार समिति द्वारा अब तक जंगलों की वनोपज से अपनी आजीविका परंपरागत रूप से चलाते आ रहे 3 हजार 292 जनजाति वर्ग के हितग्राहियों को उन्हें काबिज वन भूमि का अधिकार प्रमाण पत्र प्रदान किए गए हैं। वन अधिकार प्रमाण पत्र मिलने से पूर्व ऐसे हितग्राहियों को वन भूमि का अतिक्रामक मानकर विभाग द्वारा बेदखली का नोटिस प्रदान किया जाता रहा है।
लेकिन सरकार की कल्याणकारी नीति के तहत उन्हें अधिकार पत्र मिल जाने से स्वतंत्र रूप से निडर होकर कृषि कार्य करते हुए आदिवासी भाई-बहन अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। वन अधिकार पत्र धारक अनुसूचित जनजाति के इन हितग्राहियों को मनरेगा सहित अन्य आदिम जाति कल्याण की योजनाओं से जनपद पंचायत द्वारा इनकी काबिज भूमि में मेड बंधान, फलोद्यान, सिंचाई सुविधा, डीजल पंप, बैलगाड़ी आदि कृषि उपकरण निःशुल्क प्रदान किए गए हैं।
जिला संयोजक जनजातीय कार्य विभाग अविनाश पांडेय बताते हैं कि सतना जिले में वर्ष 2009 से 2019 तक 2520 जनजाति वर्ग के वन भूमि पर काबिज हितग्राहियों को अधिकार पत्र प्रदान किए गए हैं। वर्ष 2020 में एक बार पुनः निरस्त दावे का वन मित्र पोर्टल से ऑनलाइन सत्यापन के बाद वर्ष 2021 में 772 जनजाति भाइयों को वनाधिकार प्रमाण पत्र पुनः उपलब्ध कराए गए हैं। वर्षवार जानकारी के अनुसार वर्ष 2009 में 994 जनजातीय हितग्राही, वर्ष 2010 में 327, वर्ष 2011 में 263, वर्ष 2012 में शून्य, वर्ष 2013 में 68, वर्ष 2014 में 45, वर्ष 2015 में 182, वर्ष 2016 में 304, वर्ष 2017 में 197, वर्ष 2018 में 140, वर्ष 2019 में शून्य और ऑनलाइन वन मित्र पोर्टल से परीक्षण सत्यापन के उपरांत वर्ष 2020 में 645 तथा वर्ष 2021 में 127 जनजाति वर्ग के हितग्राहियों को वन भूमि पर काबिज अधिकार पत्र प्रदान किए गए हैं।