मूर्तिकारों के साथ बैठक आयोजित
इंदौर: प्लास्टर ऑफ पैरिस (पी.ओ.पी.) की मूर्तियों के निर्माण व विक्रय पर प्रतिबंध तथा जल स्त्रोतों में इनके विसर्जन पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा लगाये गये प्रतिबंध के संबंध में शहर के मूर्तिकारों के साथ बैठक का आयोजन मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इन्दौर द्वारा किया गया. बैठक में जिला प्रशासन, मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं नगर निगम के अधिकारियों सहित शहर के लगभग 50 मूर्तिकारों द्वारा भाग लिया गया. उल्लेखनीय है कि कलेक्टर-इन्दौर द्वारा दण्डप्रक्रिया संहिता की धारा 144 के अंतर्गत उक्त संबंध में गत दिवस प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किये गये हैं।
इन आदेशों की जानकारी सभी मूर्तिकारों को दी गई व अपर कलेक्टर पवन जैन द्वारा उपस्थित मूर्तिकारों को उपरोक्त प्रतिबंधात्मक आदेशों का पालन करने के निर्देश दिये गये. अपर कलेक्टर पवन जैन ने कहा कि आने वाले त्यौहार गणेश उत्सव/दुर्गा उत्सव हमारी आस्था के पर्व है. इन त्यौहारों को हमें इको फ्रेंडली ढंग से मनाना चाहिये ताकि हमारे महत्वपूर्ण जल स्त्रोतों को प्रदूषण से बचाया जा सके. श्री जैन ने सभी मूर्तिकारों से आग्रह किया गया कि वे पीओपी की मूर्तियों का निर्माण व विक्रय नहीं करें. औचक जांच का कार्य नगर निगम के अधिकारियों द्वारा किया जाएगा. दोषी पाये जाने पर संबंधित दोषी संस्था के विरूद्ध दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के उल्लंघन स्वरूप धारा 188 के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी. बैठक के दौरान सभी मूर्तिकारों द्वारा शासन के उक्त आदेशों का पालन करने का आश्वासन दिया गया.
धातुएं पानी को बना देती है विषैला
बैठक में क्षेत्रीय अधिकारी मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आर.के. गुप्ता ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेशों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि मूर्तिकार पीओपी की मूर्तियां ना बनाये व मिट्टी की मूर्तिया बनाई जाए. उत्सव समाप्ति के पश्चात मूर्तियों का विसर्जन जल स्त्रोतों जैसे नदी, तालाब, झरना इत्यादि में प्रतिबंधित रहेगा. विसर्जन हेतु नगर निगम इन्दौर द्वारा पृथक से विसर्जन कुण्ड बनाये जायेंगे. श्री गुप्ता ने जानकारी दी कि जलीय स्त्रोतों में विसर्जन के कारण भारी मात्रा में जल प्रदूषण होता है.
रासायनियक रंगों एवं पेन्टस में विभिन्न तरह की खतरनाक धातुएँ जैसे क्रोमियम, तांबा, निकिल, जस्ता, आर्सेनिक, एन्टीमनी एवं विभिन्न डाई का उपयोग होता है. ऐसी मूर्तियों को जब जल में विसर्जित किया जाता है तब यह पदार्थ जल में घुल जाते है और जल की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं. धातुएं पानी में घुलकर पानी को विषैला बना देती है. मूर्तिया जल स्त्रोतों में विसर्जित करने से पानी की कन्डक्टिविटी, डिजाल्व सॉलिड, बी.ओ.डी. इत्यादि बढ़ जाती है तथा घुलित ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे जलीय जीव विशेषकर मछलिया काल कवलित हो जाती है. जल स्त्रोतों के पानी को प्रदूषित होने से बचाने के लिये यह आवश्यक है कि पर्यावर्णीय अनुकूल (इको फ्रेन्डली) सामग्री का उपयोग किया जाए.