पुण्यतिथि 13 अप्रैल के अवसर पर
मुंबई, (वार्ता) बॉलीवुड में बलराज साहनी को ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने अपने संजीदा और भावात्मक अभिनय से दर्शकों के दिलों पर अमिट पहचान बनायी।
रावलपिंडी अब पाकिस्तान में एक मध्यम वर्गीय व्यवसायी परिवार में एक मई 1913 को जन्में बलराज साहनी (मूल नाम युधिष्ठिर साहनी) का झुकाव बचपन से ही पिता के पेशे की ओर न होकर अभिनय की ओर था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की शिक्षा लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद बलराज साहनी रावलपिंडी लौट गए और पिता के व्यापार में उनका हाथ बंटाने लगे। वर्ष 1930 के अंत में बलराज साहनी और उनकी पत्नी दमयंती रावलपिंडी को छोडकर गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन पहुंचे। जहां बलराज साहनी अंग्रेजी के शिक्षक नियुक्त हुए। वर्ष 1938 में बलराज साहनी ने महात्मा गांधी के साथ भी काम किया। इसके एक वर्ष के पश्चात महात्मा गांधी के सहयोग से बलराज साहनी को बी.बी.सी के हिन्दी के उद्घोषक के रूप में इग्लैंड में नियुक्त किया गया।
लगभग पांच वर्ष के इग्लैंड प्रवास के बाद बलराज साहनी वर्ष 1943 में भारत लौट आए। इसके बाद बलराज साहनी बचपन का शौक पूरा करने के लिये इंडियन प्रोग्रेसिव थियेटर एसोसिएशन ( इप्टा) में शामिल हो गए। इप्टा में वर्ष 1946 में उन्हें सबसे पहले फणी मजमूदार के नाटक इंसाफ में अभिनय करने का मौका मिला। इसके साथ ही ख्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में इप्टा की ही निर्मित फिल्म धरती के लाल में भी बलराज साहनी को बतौर अभिनेता काम करने का मौका मिला। इप्टा से जुड़े रहने के कारण बलराज साहनी को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट विचारों के कारण जेल भी जाना पड़ा। उन दिनों वह फिल्म हलचल की शूटिंग में व्यस्त थे और निर्माता के आग्रह पर विशेष व्यवस्था के तहत फिल्म की शूटिंग किया करते थे। शूटिंग खत्म होने के बाद वापस जेल चले जाते थे।
वर्ष 1953 में बिमल राय के निर्देशन मे बनी फिल्म दो बीघा जमीन बलराज साहनी के कैरियर मे अहम पड़ाव साबित हुई। फिल्म दो बीघा जमीन की कामयाबी के बाद बलराज साहनी शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने एक रिक्शावाले के किरदार को जीवंत कर दिया। रिक्शावाले को फिल्मी पर्दे पर साकार करने के लिए बलराज साहनी ने कलकत्ता अब कोलकाता की सड़को पर 15 दिनों तक खुद रिक्शा चलाया और रिक्शेवालों की जिंदगी के बारे में उनसे जानकारी हासिल की। फिल्म की शुरुआत के समय निर्देशक बिमल राय सोचते थे कि बलराज साहनी शायद ही फिल्म में रिक्शावाले के किरदार को अच्छी तरह से निभा सकें।
वास्तविक जिंदगी में बलराज साहनी बहुत पढ़े- लिखे इंसान थे। लेकिन उन्होंने बिमल राय की सोच को गलत साबित करते हुए फिल्म में अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया। दो बीघा जमीन को आज भी भारतीय फिल्म इतिहास की सर्वश्रेष्ठ कला फिल्मों में शुमार किया जाता है। इस फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी सराहा गया तथा कांस फिल्म महोत्सव के दौरान इसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
वर्ष1961 में प्रदíशत फिल्म काबुलीवाला में भी बलराज साहनी ने अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को भावविभोर कर दिया। उनका मानना था कि पर्दे पर किसी किरदार को साकार करने के पहले उस किरदार के बारे मे पूरी तरह से जानकारी हासिल की जानी चाहिए। इसीलिए वे मुंबई. में एक काबुलीवाले के घर मे लगभग एक महीने तक रहे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी बलराज साहनी अभिनय के साथ-साथ लिखने में भी काफी रूचि रखते थे। वर्ष 1960 में अपने पाकिस्तानी दौरे के बाद उन्होंने मेरा पाकिस्तानी सफरनामा और वर्ष 1969 में तत्कालीन सोवियत संघ के दौरे के बाद मेरा रूसी सफरनामा किताब लिखी। बलराज साहनी ने मेरी फिल्मी आत्मकथा किताब के माध्यम से लोगों को अपने बारे में बताया। सदाबहार अभिनेता देवानंद निर्मित फिल्म बाजी की पटकथा भी बलराज साहनी ने लिखी थी। वर्ष 1957 मे प्रदíशत फिल्म लाल बत्ती का निर्देशन भी बलराज साहनी ने किया।
निर्देशक एम.एस.सथ्यू की वर्ष 1973 मे प्रदर्शित ‘गर्म हवा’ बलराज साहनी की मौत से पहले उनकी महान फिल्मो में से सबसे अधिक सफल थी। उत्तर भारत के मुसलमानों के पाकिस्तान पलायन की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में बलराज साहनी केन्द्रीय भूमिका में रहे। इस फिल्म में उन्होंने जूता बनाने बनाने वाले एक बूढे मुस्लिम कारीगर की भूमिका अदा की। उस कारीगर को यह फैसला लेना था कि वह हिन्दुस्तान में रहे अथवा नवनिर्मित पाकिस्तान में पलायन कर जाए। अगर दो बीघा जमीन को छोड़ दें, तो बलराज साहनी के फिल्मी कैरियर की सबसे बेहतरीन अदाकारी वाली फिल्म गर्म हवा ही थी।
अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को भावविभोर करने वाले बलाराज साहनी 13 अप्रैल 1973 को इस दुनिया को अलविदा कह गये। बलराज साहनी के कैरियर की उल्लेखनीय फिल्मों में कुछ अन्य है हम लोग, गरम कोट, सीमा, वक्त, कठपुतली, लाजवंती, सोने की चिड़िया, घर-संसार, सट्टा बाजार, भाभी की चूडियाँ, हकीकत, दो रास्ते, एक फूल दो माली, मेरे हम सफर आदि।