खनन के लिए अनुपयुक्त भूमि के उपयोग के लिए कैबिनेट की मंजूरी

नयी दिल्ली 13 अप्रैल (वार्ता) सरकार ने खनन के लिए अनुपयुक्त भूमि को उपयोगी बनाने और कोयला क्षेत्र में निवेश तथा रोजगार बढ़ाने के उद्देश्य से कोयला युक्त क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 (सीबीए अधिनियम) के तहत अधिग्रहित भूमि के उपयोग के लिए नीति को मंजूरी दी है।
सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने बुधवार को यहाँ संवाददाता सम्मेलन में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसकी मंज़ूरी दी। उन्होंने कहा कि खनन की जा चुकी या व्यावहारिक रूप से खनन के लिए अनुपयुक्त भूमि के उपयोग को सुविधाजनक बनाने और कोयला क्षेत्र में निवेश तथा रोजगार सृजन को बढ़ाने के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला युक्त क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 (सीबीए अधिनियम) के तहत अधिग्रहित भूमि के उपयोग के लिए नीति को मंजूरी दी है। इस नीति में कोयला और ऊर्जा से संबंधित अवसंरचना के विकास तथा स्थापना के उद्देश्य से ऐसी भूमि के उपयोग का प्रावधान है।
उन्होंने कहा कि सरकारी कोयला कंपनियां, जैसे कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और इसकी सहायक कंपनियां, सीबीए अधिनियम के तहत अधिग्रहित इन भू-क्षेत्रों की मालिक बनी रहेंगी और यह नीति, केवल नीति में दिए गए निर्दिष्ट उद्देश्यों के लिए ही, भूमि को पट्टे पर देने की अनुमति देती है। कोयला और ऊर्जा संबंधी अवसंरचना विकास गतिविधियों के लिए सरकारी कोयला कंपनियां संयुक्त परियोजनाओं में निजी पूंजी लगा सकती हैं।
उन्होंने कहा कि जिस सरकारी कंपनी के पास भूमि है, वह ऐसी भूमि को नीति में दी गई निश्चित अवधि के लिए पट्टे पर देगी और पट्टे के लिए संस्थाओं का चयन एक पारदर्शी, निष्पक्ष और प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया और तंत्र के माध्यम से किया जाएगा, ताकि अधिकतम मूल्य प्राप्त किया जा सके।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जिन भू-क्षेत्रों से खनन किया जा चुका है या जो कोयला खनन के लिए व्यावहारिक रूप से अनुपयुक्त हैं, उन पर अनधिकृत अतिक्रमण होने की संभावना रहती है और सुरक्षा तथा रख-रखाव पर अनावश्यक व्यय करना पड़ता है। अनुमोदित नीति के तहत, सरकारी कंपनियों से स्वामित्व को बिना हस्तांतरण किये विभिन्न कोयला और ऊर्जा संबंधी अवसंरचना की स्थापना से बड़ी संख्या में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार का सृजन होगा।
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित नीति घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करके, आयात निर्भरता को कम करके, रोजगार सृजन आदि के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को साकार करने में मदद करेगी। इस नीति से विभिन्न कोयला और ऊर्जा अवसंरचना विकास गतिविधियों के लिए भूमि का फिर से उपयोग किया जा सकेगा जिससे देश के पिछड़े क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।

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