आधुनिक युग में विमान सेवाएं प्रगति व गति का पैमाना है और भारत की हालत यह है कि न सिर्फ निजी क्षेत्र की विजय माल्या की किंग फिशर एयर लाइंस और नरेश गोयल की जेट एयरवेज घाटे से चली बल्कि इनसे काफी पहले भारत सरकार का राष्ट्रीय उपक्रम नेशनल केरियर एयर इंडिया और इंडियन एयर लाइंस भी भारी घाटे में चले. इन्हें कई बार केंद्रीय बजट से पूंजी सपोर्ट भी कर्ज के रूप में दिया गया, लेकिन ये दोनों हवाई संस्थान न तो केंद्र सरकार का रुपया वापस कर सके और न ही बार-बार पूंजी मिलने के बाद भी घाटे से मुनाफे में आ सके.
नतीजा यह हुआ कि केन्द्र सरकार को यह निर्णय लेना पड़ा कि एयर इंडिया का पून्जी विनिमेश से पुन: निजीकरण कर दिया जाए. आजादी आने के समय दो औद्योगिक घराने टाटा और बिड़ला- टाटा एयरलाइन्स और भारत एयरवेज के नाम से दो हवाई कम्पनियां मुनाफे में चला रहे थे और उनका विस्तार भी होता जा रहा था.
पंडित नेहरू ने पब्लिक सेक्टर की नीति के तहत इन दोनों निजी हवाई कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण कर सार्वजनिक क्षेत्र में सरकारी व्यवसायिक कम्पनी के रूप में एयर इंडिया और इंडियन एयर लाइन्स बना डाली. मुनाफे में आई ये विमान सेवाएं कुछ वर्षों तक मुनाफे में चली, उसके बाद ऐसे घाटे में आती रही कि अब इनका पुन: निजीकरण किया जा रहा है.
विजय माल्या का देश का बड़ा स्थापित यूनाइटेड ब्रेवरीज (यू.बी.) अंग्रेजी शराब बनाने का बड़ा उद्योग था. डाइवर्शन के लिये हवाई यातायात के क्षेत्र में किंगफिशर नाम की एयरलाइन्स बनाई. जैसे केंद्र का एयर इंडिया घाटे में चला और अब निजी हो रहा है इसी तरह माल्या का किंगफिशर भी घाटे में चला.
सरकार ने इसकी वित्तीय मदद तो की नहीं बल्कि बैंकों से कहा कि इससे किंग फिशर को दिया कर्जा सख्ती से वसूला जाए. घाटे का एयर इंडिया भी सरकार का रुपया लौटा नहीं पाया और घाटे में चली गयी. किंग फिशर के लिये भी यह संभव नहीं था. लिहाजा माल्या को कर्जा न चुका पाने के कारण देश छोडऩा पड़ा.
अभी हाल ही नरेश गोयल की जेट एयरवेज भी एयर इंडिया और किंग फिशर की तरह घाटे में आ गयी. पायलटों का वेतन नहीं दे पायी.लीज पर लिये विमानों का लीज मनी नहीं दे पायी और बंद होने की कगार पर आ गयी. इस समय केंद्र सरकार ने बैंक से यह नहीं कहा कि जेट एयरवेज में सख्ती से कर्जा वसूला जाए. बल्कि उल्टे यह कहा कि बैंक जेट एयरवेज को घाटे से उबरने में नया कर्जा दें.
बैंकों ने यह शर्त रखी कि नरेश गोयल जेट एयर लाइन्स मैनेजिंग बोर्ड में अध्यक्ष का पद छोड़ दें, कम्पनी का मैनेजमेंट बैंकों को सौंप दें और यही होने पर जेट एयरवेज को 1500 करोड़ रुपयों का कर्जा दिया गया. देश में पहली बार ऐसा किया गया कि बैंकों ने कर्जदार कम्पनी को नया कर्जा दिया और उस कम्पनी का मैनेजमेंट भी कर रही है.
विजय माल्या ने इस अवसर पर बड़ी वेदना के साथ यह कहा कि सरकार ने उसके और उसकी किंगफिशर कम्पनी के साथ भी यही नीति अपनायी होती तो उसकी किंगफिशर कम्पनी घाटे से उबर जाती और बैंकों का कर्जा भी चुक जाता.
अगर सरकार को यह महसूस हो कि उसके द्वारा विजय माल्या के साथ भेदभाव बरता गया, जो पून्जी सपोर्ट घाटे में एयर इंडिया और जेट एयरवेज को दिया गया वह उसे और किंगफिशर को दिया जाना था तब सरकार अभी भी विजय माल्या के साथ समानता का व्यवहार कर जेट एयरवेज और एयर इंडिया के समान उसे भी पूंजी सपोर्ट और नया कर्जा और किंगफिशर का मैनेजमेंट भी बैंकों को देकर देश में तीनों एक सरकारी- एयर इंडिया और दो निजी किंगफिशर व जेट एयरवेज को पुन: घाटे से उबारना चाहिए. आज के युग में कोई भी देश बिना विमान सेवाओं के संसार के साथ चल ही नहीं सकता.