कुंभनगर, दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुंभ में कल्पवास कर रहे हजारों श्रद्धालुओं को इलाहाबादी सुरूखा अमरूद खूब पसंद आ रहा है।तीर्थराज प्रयाग में सित् (गंगा) असित् (यमुना) और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के विस्तीर्ण रेती पर दूर दराज से आकर कल्पवास कर रहे इन स्नानार्थियों को बेमिसाल स्वाद और सेब की शक्लसूरत वाला इलाहाबादी सुरूखा और सफेदा अमरूद पहली पसंद बना हुआ है।
इलाहाबादी सेबिया अमरूद का कोई जोड़ नहीं है। सेब की शक्ल में छोटे और बेहद खूबसूरत दिखने वाले इन अमरूदों ने सबको क्रेजी बना रखा है। बहुत से लोग तो सेबिया को ही सेब समझ लेते हैं। खास बात यह है कि सेबिया नस्ल का अमरूद किसी दूसरे शहर में पैदा नहीं होता। उर्दू के नामचीन शायर अकबर इलाहाबादी ने कभी कहा था, “कुछ इलाहाबाद में सामां नहीं बहबूद के, यां धरा क्या है ब-जुज़ अकबर के और अमरूद के।”
कल्पवासियों और स्नानार्थियों के साथ ही विदेशियों को भी यह लुभा रहा है। इसके अलावा सफेदा, सेबिया, लखनऊ-49 और ललित प्रजाति के अमरूद का स्वाद संगम आने वालों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। यह सवादिष्ट होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए औषधि का खजाना है। इसमें रोगों से लड़ने की असीम क्षमता है।
डा. नरेन्द्र केसरवानी आयुर्वेदाचार्य ने बताया कि स्वादिष्ट होने और सुपाच्य होने के साथ-साथ यह औषधीय खजाना है। अमरूद विटामिन (सी) का भण्डार है। इसमें संतरा और नींबू की तुलना में चार से 10 गुना अधिक विटामिन (सी) पाया जाता है।
इसके सेवन से विटामिन सी, बी व ए की कमी दूर होती है। सी रोग से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है। बी शरीर के लिए पौष्टिक एवं ए आंख की रोशनी और दांतों को मजबूत रखता है। डा केसरवानी ने बताया कि अमरूद उच्च ऊर्जा युक्त फल है जिसमें भरपूर मात्रा में विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में कैल्सियम होने के कारण हड्डियोंयों को मजबूती मिलती है।
इसमें पाया जाने वाला विटामिन बी-9 शरीर की कोशिकाओं और डीएनए को सुधारने का काम करता है जबकि इसमें मौजूद पोटैशियम और मैग्नीशियम दिल और मांसपेशियों को दुरुस्त रखकर उन्हें कई बीमारियों से बचाता है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
चिकित्सक ने बताया कि इसमें मौजूद लाइकोपीन नामक फाइटो न्यूट्रिएंट्स शरीर को कैंसर और ट्यूमर के खतरे से बचाने में सहायक होते हैं और इसमें पाया जाने वाला विटामिन ए और ई आंखों, बालों और त्वचा को पोषण देता है।
अमरूद में पाया जाने वाला बीटा कैरोटीन शरीर को त्वचा संबंधी बीमारियों से बचाता है तथा नियमित सेवन करने से कब्ज की समस्या में राहत मिलती है और यह मेटाबॉलिज्म को सही रखता है जिससे शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है। इसके अलावा इसकी पत्तियां भी औषधि का काम करती है।
नाम के अनुरूप लालिमा लिये सुरूखा और लजीज स्वाद के लिए सफेदा पहचाना जाता है। मिठास के मामले में यह सेब से बीस साबित होता है। पूरे शहर में अमरूद की बिक्री होती है लेकिन मेला क्षेत्र के नजदीक चुंगी क्षेत्र के आस-पास पचासों ठेलों और दुकानों पर अमरूद सजे रहते हैं।
एक तरफ सेब और दूसरी तरफ उसी रंग वाले अमरूद लोगों के आकर्षण के केन्द्र बने हैं। गिरजाघर चौराहे के पास सड़क किनारे पटरियों पर बड़ी संख्या में अमरूद की दुकाने लगती हैं। उच्च न्यायालय के निकट होने के कारण अधिवक्ता, मुवाक्किल और अन्य राहगीर इसकी सुगंध और स्वाद के आकर्षण से खिंचे चले आते हैं। उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सुरेश कुमार सिंह का कहना है कि अमरूद के इसी इलाहाबादीपन में पहले की तरह ही स्वाद की मिठास और अनूठेपन की खुशबू आती है।
‘इलाहाबादी सेबिया‘ कहने के बाद कम से कम किसी इलाहाबादी को यह बताने की जरूरत नहीं कि यह सेब नहीं सेब की शक्ल-सूरत वाला अमरूद है, जो अपनी बिरादरी में अलग और अनूठा है। ‘इलाहाबादी सुर्खा‘ की ठसक भी ऐसी ही है। देश के दूसरे हिस्सों में ‘इलाहाबादी अमरूद’ के कुनबे को बसाने, बढ़ाने की तमाम कोशिशें हुईं लेकिन सब बेमानी रहा।
कुंभ मेला होने के कारण अमरूद के दुकानदारों की अच्छी कमाई हो रही है। मेला से पहले 25-30 रूपये किलो बिकने वाला अमरूद दुगने से भी अधिक दाम पर बिक रहा है। कल्पवास करने वाले श्रद्धालु दिन में एक समय ही भोजन करते हैं। इसलिए दोपहर में अमरूद ही उनकी पहली पसंद है।
सेक्टर छह में कल्पवास कर रहे जंगी रमाशंकर अपने परिवार के सदस्यों के साथ अरूण कुमार पण्डा (पहचान चरण पादुका) के शिविर में कल्पवास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह पिछले 15 वर्षों से कल्पवास कर रहे हैं। इस दौरान एकल एक बार ही भोजन ग्रहण किया जाता है। उन्होंने बताया कि अमरूद से पेट तो भरता ही है और वैज्ञानिक रूप से औषधीय का काम करता है। स्वदिष्ट और सुपाच्य होने के साथ इसमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक है।
नागवासुकी के पास स्थित सेक्टर छह में पिछले 26 साल से कल्पवास कर रहे फूलपुर निवासी अरविंद कुमार मिश्र ने बताया कि तीर्थराज प्रयाग मे प्रतिवर्ष माघ महीने मे लाखों श्रद्धालु यहाँ एक महीने तक संगम तट पर निवास करते हुए जप, तप, ध्यान, साधना, यज्ञ एवं दान आदि विविध प्रकार के धार्मिक कृत्य करते हैं।
उनहोंने बताया कि पुराणों में कल्पवास के दौरान एक समय ही भोजन लेने का विधान बताया गया है। इसलिए दिन में एक बार भोजन लिया जाता है। भूख लगने पर सस्ता और स्वादिष्ट होने के कारण अमरूद ही लोगों की पहली पसंद है। कुछ लोग सेब, केला और अन्य फल का भी प्रयाग करते हैं। अरिओम पण्डा के शिविर में मध्य प्रदेश रींवा के रहने वाले मोहित तिवारी,पत्नी रूक्मणी, पंटून पुल नम्बर आठ के पास गोपाल जी पण्डा के शिवर में अमरोहा के दीपक चौरसिया, बद्री प्रसाद तिवारी, कवीन्द्र मिश्र, कन्नौज के गिरधर प्रसाद, और फतेहपुर निवासी राधाकान्त तिवारी पत्नी सुशीला, प्रेमा, दीपा चाची सभी ने इलाहाबादी अमरूद के लजीज स्वाद का बखान किया।
अमरूद की महक और स्वाद की बानगी इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन पर उस समय देखने को मिलती है जब ट्रेन रूकते ही यात्रियों की भीड़ अमरूद के स्टालों पर टूट पडती है और हर कोई ज्यादा से ज्यादा अमरूद खरीदकर अपने साथ ले जाने को आतुर दिखता है।
आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि जिले के लगभग बड़े क्षेत्रफल में अमरूद की खेती की जाती है। इसके अलावा पडोसी जिले कौशाम्बी के कौडि़हार, बहादुरपुर, सैदाबाद, फूलपुर, सोरांव, बहरिया, होलागढ़, करछना, मेजा, कोरांव आदि क्षेत्रों के किसान आधुनिक तरीके से अमरूद की खेती कर रहे हैं।
चौक क्षेत्र निवासी कादिर ने अमरूद से निर्मित पेड़े, बर्फियां, लड्डू आदि मिठाइयों का व्यवसाय करते हैं। उनका कहना है अन्य मिठाइयों के लजीज स्वाद से कमतर यह भी नहीं है। बाहर से आने वाले अमरूद से बने मिठाइयों को तरजीह देते हैं। इलाहाबादी सुरूखा वेलफेयर एेसोसिएशन के अध्यक्ष इंद्रजीत सिंह पटेल ने बताया कि इलाहाबाद और कौशांबी में सुरूखा, सेबिया और सफेदा की उपज होती है।
इलाहाबादी सुरूखा और सफेदा की मांग पूरी दुनिया, खासकर खाड़ी के सउदी अरब, कुवैत, दुबई, यूएई, कतर, बहरीन, यमन, ओमान, जार्डन आदि देशों हैं। उन्होंने बताया कि खाड़ी देश को निर्यात करने के लिए बड़े व्यापारी माल को मुम्बई ले जाते हैं उसके बाद वहां से हवाई जहाज या पानी के जहाज से खाडी देश को भेजते हैं।
श्री पटेल ने बताया कि इलाहाबादी सेबिया अमरूद का कोई जोड़ नहीं है। सेब की शक्ल में छोटे और बेहद खूबसूरत दिखने वाले इन अमरूदों ने सबको क्रेजी बना रखा है। बहुत से लोग तो सेबिया को ही सेब समझ लेते हैं। खास बात यह है कि सेबिया नस्ल का अमरूद किसी दूसरे शहर में पैदा नहीं होता। उन्होंने बताया कि शहर में करीब 20 टन की रोज खपत होती है लेकिन मेला होने के कारण इसमें डेढ से दो गुना का फर्क आया है।
उन्होंने बताया कि हरी सब्जियों की तरह अमरूद का पूरा कारोबार नकदी पर होता है। उन्होंने बताया कि पारंपरिक आढ़ती नकदी देकर अमरूद खरीदते हैं। उन्होंने बताया कि पेड़ से अमरूद तोड़ने से लेकर मंडी तक पहुंचाने में हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
चुंगी के पास सेबिया अमरुद बेचने वाले कादिर कहते हैं कि पिछले साल तक एक दिन में 25-35 किलो सेबिया बेच लेते थे। मेला होने से व्यवसाय अच्छा चलने इसकी बिक्री बढ़कर करीब दो गुनी हो गयी है। एक अन्य अमरूद व्यापारी ने एक सवाल के जवाब में बताया कि इस बार फसल पहले से बेहतर नहीं है इसलिए हमें ही अधिक मूल्य पर खरीदने पड रहे हैं। सउके किनारे सारा दिन बिक्री के लिए खड़े रहना अपने आप में कष्टकारी है। पहले की तुलना में हमने मेले की वजह से इसके मूल्यों में थोडा इजाफा किया है। 50-60 रूपये किलो बेच रहे हैं। श्रद्धालु, स्नानार्थी और स्थानीय लोग इसे चाव से खरीदते हैं।