हरीश दुबे
भिण्ड, ग्वालियर-चम्बल अंचल की अजा वर्ग के लिए एकमात्र सुरक्षित सीट भिण्ड पर विगत तीन दशक से भाजपा का निरंतर कब्जा बना हुआ है, इस बार 2019 के आमचुनाव में जहां कांग्रेस के समक्ष भाजपा के इस गढ़ को भेदकर विजय का परचम लहराने की कठिन चुनौती है वहीं भाजपा अपनी जीत के इस अटूट अश्वमेघ में कामयाबी की एक और मंजिल जोडऩे की मशक्कत में जुटी है.
इन तीस सालों में लोकसभा के आठ चुनाव हुए हैं, आठों बार भाजपा को विजय एवं कांग्रेस के खाते में पराजय दर्ज हुई है. 2014 के चुनाव पर नजर डालें तो इस सीट पर कांग्रेस की कमजोर स्थिति का अहसास होता है, जब भाजपा के प्रत्याशी डॉ. भागीरथ प्रसाद 1.59 लाख वोटों से विजयी हुए थे.
इस चुनाव में भाजपा के भागीरथ को 4,04,474 वोट मिले जबकि निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की इमरती देवी को सिफऱ् 2,44,513 वोट ही हासिल हुए. भिण्ड में 2014 का संसदीय चुनाव दिलचस्प नाटकीय घटनाक्रम से परिपूर्ण रहा.
दरअस्ल, कांग्रेस ने आईएएस की सेवा से सक्रिय राजनीति में आए भागीरथ प्रसाद को अपना प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन कांग्रेस से टिकट मिलने के बाद भागीरथ प्रसाद ने पाला बदल लिया और भाजपा से टिकट ले आए. अपने प्रत्याशी के रण छोड़ कर प्रतिद्वंद्वी दल में चले जाने से संकट में घिरी कांग्रेस ने आनन फानन में डबरा की विधायक इमरती देवी को भिण्ड संसदीय सीट से मैदान में उतार दिया, चूंकि इमरती देवी ने ग्वालियर जिले की ही राजनीति की है लिहाजा भिण्ड में वे भाजपा के समक्ष तगड़ी चुनौती पेश नहीं कर सकीं और कांग्रेस इस संसदीय क्षेत्र में लगातार आठवीं बार हार गई.
भिण्ड लोकसभा सीट पर भाजपा भी पालाबदल के खेल का शिकार हो चुकी है. भाजपा को दस वर्ष पूर्व उस वक्त करारा झटका लगा था जब यहां से उसके चार बार सांसद रहे डॉ. रामलखन सिंह अचानक बसपा में चले गए थे. भाजपा के स्थानीय नेता भले ही रामलखन सिंह को अप्रासंगिक मानें लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव में रामलखन ने अपने पुत्र संजीव सिंह कुशवाह को भिण्ड विस सीट से बसपा के टिकट पर विधायक निर्वाचित कराकर अपने राजनीतिक जनाधार का परिचय दिया है.
सिर्फ कांग्रेस और भाजपा ही नहीं बल्कि बसपा भी 2019 के चुनाव में पूरी ताकत के साथ चुनाव समर में दो-दो हाथ करने की तैयारी में है. 2014 में बसपा तीसरे नंबर पर रही थी तथा कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया था. दलित वोट बैंक में खासा असर रखने वाले बहुजन संघर्ष दल के मुखिया फूलसिंह बरैया पिछली बार की तरह इस बार भी ताल ठोकने की व्यूहरचना कर रहे हैं.
भाजपा के मौजूदा सांसद भागीरथ प्रसाद एक बार फिर से भिण्ड सीट से नुमाइंदगी करने का मूड बनाए हुए हैं लेकिन भाजपा की वीथिकाओं में इस बार नए चेहरे पर दांव खेलने की सुगबुगाहट है. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भागीरथ की पैरोकारी की है लेकिन बड़ी तेजी से पूर्व मंत्री लालसिंह आर्य का नाम भी उछला है. लालसिंह ताजा विधानसभा चुनाव में गोहद सीट से पराजित हो गए थे लेकिन अन्य पराजितों की तरह घर न बैठते हुए लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं.
मुरैना के महापौर अशोक अर्गल को भी भिण्ड से लोकसभा चुनाव लड़ाने की बात चली है. अर्गल दस वर्ष पहले भी भिण्ड से सांसद रह चुके हैं. उधर भिण्ड सीट से टिकट को लेकर कांग्रेस में सिंधिया और दिग्विजय, दोनों ही खेमे सक्रिय हैं.
सिंधिया शिविर से एक बार फिर इमरती देवी का नाम उछला है, हालांकि वे इस समय कमलनाथ की काबीना में महिला एव बाल विकास मंत्री का ओहदा सँभाल रही हैं लेकिन कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए उन्हें मंत्री पद छोडऩे की आवश्यकता नहीं है.
सिंधिया खेमे से ही कांग्रेस अजा विभाग के प्रदेश संयोजक प्रभुदयाल जौहरे एवं पूर्व सांसद बारेलाल जाटव के नाम भी उभरे हैं. उधर दिग्विजय खेमे से पूर्व सांसद बाबूलाल सोलंकी एवं जीडीए के पूर्व उपाध्यक्ष गोपीलाल भारतीय ने टिकट मांगा है. पूर्व सांसद बाबूलाल सोलंकी को पीसीसी द्वारा भिण्ड लोकसभा सीट का प्रभारी बनाए जाने के बाद उनकी दावेदारी कमजोर पड़ी है. डॉ. दिनकर भी कांग्रेस में दावेदार के रूप में उभरे हैं.
विधानसभा के नतीजों ने बढ़ाया कांग्रेस का उत्साह: भिण्ड लोकसभा में भिण्ड जिले की पांच एवं दतिया जिले की तीन विधानसभा सीटें शामिल हैं. हालिया विधानसभा चुनाव में इन कुल आठ सीटों में से कांग्रेस को 5, भाजपा को 2 एवं बसपा को 1 सीट पर विजय प्राप्त हुई थी, इस तरह विधानसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए उत्साहवर्धक हैं, यही कारण है कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव की फिजां को लोकसभा चुनाव तक बरकरार रखना चाहती है. भाजपा को भिण्ड व दतिया जिलों में सिर्फ एक-एक ही सीट मिली थी. लिहाज़ा लोकसभा चुनाव में फतह हासिल करने के लिए उसे कुछ अतिरिक्त मेहनत करने की चुनौती है.
अब तक 7 बार कांग्रेस, 9 बार भाजपा जीती : भिण्ड लोकसभा सीट पर पिछले 16 आमचुनावों के आंकड़े बताते हैं कि अब तक यहां 7 बार कांग्रेस को विजयश्री मिली तो भाजपा 9 बार जीती है. सन 52 से 71 तक कांग्रेस की जीत का सिलसिला जारी रहा, इस दौरान सूर्यप्रसाद, यशवन्तसिंह कुशवाह तथा गंगाचरण दीक्षित जैसे स्वतन्त्रता सेनानी यहां से कांग्रेस के सांसद रहे.
कांग्रेस की जीत के इस सिलसिले को 1977 की इंदिरा विरोधी लहर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने तोड़ा जब वे भारतीय जनसंघ की प्रत्याशी के रूप में यहां से चुनाव जीतीं. 80 एवं 84 में यहां से पुन: कांग्रेस के कालीचरण शर्मा एव किशनसिंह जूदेव सांसद रहे लेकिन 89 से अब तक कांग्रेस इस सीट पर हाशिए पर सिमटी हुई है.89 में नरसिंह राव दीक्षित तो 91 में योगानंद सरस्वती भाजपा के सांसद रहे. 96 से 2004 तक रामलखन सिंह लगातार जीतते रहे. 2009 में यह सीट अजा वर्ग के लिए आरक्षित हो गई, तब भी भाजपा का कब्जा बरकरार रहा, इस वर्ष अशोक अर्गल तो 2014 में भागीरथ प्रसाद विजयी हुए.
विकास बनेगा मुख्य चुनावी मुद्दा
इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि चम्बल अंचल के जिलों में विकास के मामले में भिण्ड सर्वाधिक पिछड़ा हुआ है. 2019 में विकास ही प्रमुख चुनावी मुद्दा बनेगा. कांग्रेस अभी से ऐलान कर चुकी है कि वह विगत पन्द्रह वर्ष के भाजपा राज की नाकामी और भिण्ड के प्रति बरते गए उपेक्षा भाव को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाएगी, वहीं भाजपा ने मोदी-शिवराज सरकार की उपलब्धियों को जनता के बीच ले जाकर उसी के आधार पर चुनावी कैम्पेनिंग करने की रणनीति बनाई है.