लोकसभा सीट
रीवा
खास बातें
- प्रत्याशी चयन से पहले भाजपा में गुटबाजी
- जनार्दन को लेकर निर्वाचित विधायकों ने जताई आपत्ति
- 2014 में टिकट दिलाने में राजेंद्र शुक्ल की थी अहम भूमिका
- राजेंद्र शुक्ल के बड़े भाई बन सकते हैं प्रत्याशी
डॉ. रवि तिवारी
रीवा, वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए बेहद अहम है. प्रत्याशी चयन से पहले भाजपा में गुटबाजी और विरोध का स्वर मुखर हो चुका है. जनता के जनार्दन को लेकर निर्वाचित विधायकों ने आपत्ति जताते हुए लिखित विरोध किया है. ऐसे में पार्टी जनार्दन पर भरोसा कर दोबारा फिर मैदान में उतारती है या विरोध स्वर को देखते हुए नए चेहरे की तलाश करती है. हालांकि अभी केवल एक नाम पर ही चर्चा है.
वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए बेहद प्रतिष्ठा का चुनाव है. साथ ही आठ सीटों पर भाजपा के ही विधायक हैं. ऐसे में लोकसभा सीट पर भी पार्टी कब्जा करना चाहेगी.
रीवा सीट किसी भी हालत में भाजपा गंवाना नहीं चाहती, लेकिन पार्टी के अंदर जो विरोध के स्वर फूटे हैं और हाल ही विधानसभा में निर्वाचित पांच विधायकों ने जो आपत्ति और विरोध दर्ज कराया है, उसके चलते पार्टी के अंदर खलबली मच गई है. अनुशासन के दायरे में रहकर संगठन के अंदर जिस तरह से पांच विधायकों ने एक स्वर में विरोध किया है उससे गुटबाजी सामने आई है.
शुक्ल की थी अहम भूमिका: दरअसल 2014 के लोकसभा में जनार्दन मिश्र को प्रत्याशी बनाने में तत्कालीन मंत्री एवं रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल की बेहद अहम भूमिका थी और उनकी सहमति पर ही मिश्र को प्रत्याशी बनाया गया था. परिणाम स्वरूप जनार्दन मिश्र भारी मतों से विजयी होकर लोकसभा पहुंचे.
पांच वर्ष तक जनता के बीच पहुंचकर श्री मिश्र ने काम भी किया और कार्यकर्ताओं के बीच अच्छी पकड़ भी है. सांसद रहते हुए लगातार अपनी मजबूत पकड़ जनता के बीच बनाने में भले ही मिश्र सफल रहे हो लेकिन पार्टी के अन्दर उनके अपने ही टांग खींचने में लग गए हैं.
वर्षों से दबा गुस्सा प्रत्याशी चयन के पहले फूट पड़ा. दोबारा जनार्दन मिश्र को टिकट देने के पक्ष में अधिकांश विधायक नहीं है. वे किसी अन्य को प्रत्याशी बनाने की मांग कर रहे हैं. हालांकि अभी तक संगठन ने अपना रूख साफ नहीं किया है. फिर भी राजेन्द्र शुक्ल के चलते जनार्दन मिश्र सबसे प्रबल दावेदार हैं.रीवा की आठ और विंध्य से सर्वाधिक सीट विधानसभा में दिलाने का श्रेय केवल राजेंद्र शुक्ल को जाता है. ऐसे में माना जाता है कि शुक्ल की ही चलेगी और जिसके नाम पर उनकी स्वीकृति होगी, उसे ही लोकसभा का टिकट मिलेगा. उनकी सहमति ही अंतिम होगी.
सत्ता जाते ही अंदर शुरू हुई गुटबाजी: जानकार सूत्रों की मानें तो 15 वर्ष तक रीवा विधायक राजेंद्र शुक्ल का वर्चस्व रहा. सत्ता में रहते हुए कई अपने ही अन्दर ही अन्दर विरोध पाल बैठे और अब विरोध के स्वर शुरू हो गए हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि पार्टी के अन्दर गुटबाजी शुरू हो गई है. पार्टी के कुछ वर्तमान विधायक अपनी एक अलग ही चाल चल रहे है और उसी चाल का यह परिणाम है कि जनार्दन मिश्र को दोबारा लोकसभा में पहुंचने से रोकने के लिए राजनीत शुरू हो गई है.
कई नामों पर चल रहा मंथन
पार्टी के अन्दर लोकसभा चुनाव को लेकर अभी नामों पर मंथन चल रहा है. सांसद जनार्दन मिश्र के अलावा अन्य नामों पर भी चर्चा चल रही है. जैसे इंजी. विनोद शुक्ल, जो कि पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल के बड़े भाई हैं और हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में देवतालाब और मऊगंज विधानसभा में अहम भूमिका निभाई है. इनके नाम पर भी पार्टी विचार कर सकती है.
इसके अलावा पूर्व सांसद स्व. चन्द्रमणि त्रिपाठी की पुत्री और महिला मोर्चा में कई पदों पर रह चुकीं प्रज्ञा त्रिपाठी का भी नाम चर्चा में है. एक केंद्रीय मंत्री की बेहद खास मानी जाती हैं, विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक भी महिला को प्रत्याशी नही बनाया था. ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि लोकसभा का चुनाव किसी महिला को लड़ाया जा सकता है.