चुनाव विश्लेषण
हरीश दुबे
दो दिन बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाल रहे कमलनाथ के समक्ष किसानों के कर्ज माफी एवं बेरोजगार युवाओं को रोजगार भत्ता देने जैसी कठिन चुनौतियां तो होंगी ही, उन्हें संगठन एवं सत्ता के बीच सामंजस्य स्थापित करने तथा प्रदेश कांग्रेस के सभी खेमों, गुटों, उपगुटों को सरकार में पर्याप्त वजनदारी एवं हिस्सेदारी देने जैसी चुनौतियों से भी जूझना होगा.
कमलनाथ के लिए यह सत्ता प्रबंधन की अग्निपरीक्षा से गुजरने का वक्त है. राजनीतिक वीथिकाओं में यही प्रश्न पूछा जा रहा है कि क्या कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के सभी छत्रपों को संतुष्ट करके चल पाएंगे और क्या आम सहमति से कार्य करते हुए वचनपत्र के वादों को अंजाम देंगे?
नए मुख्यमंत्री के समक्ष असल चुनौती सूबे की सत्ता में भागीदारी की प्रक्रिया में गुटीय संतुलन स्थापित करने की होगी. यदि समूचे प्रदेश की कांग्रेसी राजनीति के परिदृष्य पर नजर डालें तो प्रदेश के विभिन्न अंचल छत्रपों के प्रभाव में बंटे हुए हैं. मसलन महाकौशल क्षेत्र की कांग्रेसी सियासत को विगत पेंतीस वर्षो से कमलनाथ ही निर्देशित व नियंत्रित करते रहे हैं.
इसी प्रकार ग्वालियर-चंबल में ज्योतिरादित्य सिंधिया की निर्णायक भूमिका है, हालांकि इस अंचल में डॉ. गोविंदसिंह, लक्ष्मण सिंह, केपी सिंह एवं एंदलसिंह जैसे अपने कद्दावर छवि के समर्थकों के जीतकर आने के बाद दिग्विजय सिंह ने भी इस अचंल में अपनी अहमियत साबित की है.
इसी तरह विंध्य क्षेत्र में अजय सिंह एवं भोपाल व आसपास के क्षेत्र में सुरेश पचौरी कांग्रेस के छत्रप बने हुए हैं. हालांकि अजयसिंह एवं पचैरी विधानसभा चुनाव में पराजित हुए हैं लेकिन इस एक व्यक्तिगत पराजय से उनके राजनीतिक रसूख को कमतर करके नहीं आंका जा सकता.
यह जमीनी सच्चाई है कि पंद्रह वर्श के लम्बे अंतराल के बाद प्रदेष की सत्ता में कांग्रेस की वापसी के बाद पार्टी के सभी गुट एवं उपगुट सरकार में पर्याप्त सम्मानजनक हिस्सा चाहते हैं. मुख्यमंत्री के रूप में कमलनाथ की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वे पूरी पार्टी को अपने साथ कैसे जोडक़र रखते हैं.
डिप्टी सीएम का फार्मूला खारिज होने के बाद प्रदेष कांग्रेस के ये सभी गुट प्रदेश मंत्रिमण्डल में तो अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व चाहते ही हैं, निगम-मण्डलों एवं प्राधिकरणों की नियुक्तियों में भी इन छत्रपों का महत्वपूर्ण दखल रहना तय है.
हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने कमलनाथ को फ्री हैण्ड दिया है तथा डिप्टी सीएम न बनाकर सत्ता के समानांतर केंद्र निर्मित होने की संभावना को भी टाला है लेकिन यह भी तय है कि कमलनाथ को सभी को साथ लेकर चलना ही होगा. सामंजस्य की कला में कमलनाथ को प्रवीण माना जाता है, उनकी इसी क्षमता को देखते हुए आलाकमान ने पहले उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया और अब मुख्यमंत्री चुना है.
गुटों, उपगुटों में बंटी कांग्रेस को कमलनाथ ने ही एक माला में गूंथा
विधानसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ ने जिस तरह प्रदेश में गुटों, उपगुटों में बंटी कांग्रेस को एकजुट किया तथा अपनी क्षमताओं का सौ फीसदी देते हुए पार्टी को सत्ता पथ पर पहुंचाया, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे 17 दिसंबर से शुरू हो रही अपनी नई राजनीतिक पारी में भी कामयाब ही होंगे. यह वास्तविकता है कि जिस समय कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली, उस वक्त पार्टी गुटीय अंतद्र्वंद में बुरी तरह उलझी हुई थी, छत्रपों के गुटीय हित आपस में टकरा रहे थे.
भाजपा की प्लानिंग कांग्रेस की इसी खेमेबाजी का लाभ लेते हुए लगातार चौथी बार सूबे में अपनी सरकार बनाने की थी लेकिन कमलनाथ ने प्रदेश में बिखरी हुई कांग्रेस को एकजुट कर सत्तासीन कर भाजपा के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया. राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि प्रदेश की सत्ता के संचालन में कांग्रेस के गुटीय तालमेल को बखूबी स्थापित कर प्रदेश की साढ़े सात करोड़ जनता के सपनों को पूरा करने में भी कमलनाथ सफल ही होंगे.