एक बार फिर वैज्ञानिकों ने इस बात को लेकर आगाह किया है कि भारत की देवभूमि कहा जाने वाला हिमालय क्षेत्र संकट में आने वाला है. 210 वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस तरह की चेतावनी जारी की है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमालय और हिंदु कुश में इस सदी के अंत तक तापमान बढऩे के साथ-साथ तेजी से बर्फ पिघलने लगेगा जिससे भारत और चीन समेत 8 देशों की नदियों का जल प्रवाह बुरी तरह से प्रभावित होगा. इससे इन देशों की कृषि व्यवस्था तथा बड़ी आबादी पर इसका असर पड़ेगा.
जैसा कि विदित है विशाल ग्लेशियर हिंदु कुश हिमालय क्षेत्र बनाते हैं जो विश्व की सबसे ऊंची चोटियों के इलाके में है. इसे माउंट एवरेस्ट, अंटार्कटिक और तीसरे ध्रुव के तौर पर देखा जाता है. बर्फ से ढंकी ये चोटियां चट्टानों में बदलने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं. इस सदी के अंत तक इस बर्फ क्षेत्र के पूरी तरह से पिघलने का अंदेशा है.
ऐसा नहीं है कि हिमालय पर इस तरह के संकट की चेतावनी पहली बार आई है. पिछले कुछ समय से देश और दुनिया के तमाम वैज्ञानिक हमें चेताते रहे हैं. हिमालय को लेकर हमारे देश की क्या सोच रही है, इसके लिए हमें हमारे वेद, पुराण, उपनिषद्, स्मृतियां और संहिताओं का अध्ययन करना होगा. दरअसल हमारे प्राचीन ग्रंथों में हिमालय क्षेत्र में भगवान का वास माना गया है. इसे देवभूमि माना जाता है.
हिमालय को स्वयं पर्वत नहीं जीवमान इकाई और पूजने योग्य कहा गया है. इस दर्शन का प्रमुख उद्देश्य यही रहेगा कि जब हम हिमालय को भगवान और देव की दृष्टि से देखेंगे तो इसको प्रदूषित नहीं होने देंगे. इसका संरक्षण करेंगे. हमारे दूरदृष्टा पुरखों का ऐसा संदेश देने के पीछे यही भाव था कि हिमालय भूमि सुरक्षित रहेगी तो कई देश सुरक्षित रहेंगे.
ग्लोबल वार्मिंग से निपटते देश और दुनिया के कई देशों में सेमिनारों से लेकर गहन अध्ययन तक होते रहे हैं. लेकिन अब वक्त आ गया है इस पर सरकारें और समाज दोनों मिलकर क्रियान्वयन करें. एक ठोस रणनीति बनाई जाए और उस पर इकाई से लेकर समष्टि तक सभी जन आगे आएं.
यह हम भलीभांति जानते हैं कि न केवल हिमालयीन, गैर हिमालयीन पर्वतों से निकलने वाली नदियां भी अपने अस्तित्व की आखिरी लड़ाई लड़ रही हैं. यदि ग्लेशियर समाप्त हो गए तो गंगा और यमुना नदी में एकाएक बाढ़ आएगी और बाद में ये नदियां- केवल नाममात्र की रह जाएंगी. भारत और अन्य देशों की बहुसंख्य आबादी को बचाना है तो हम सब को मिलकर हिमालय और देश की अन्य नदियों को बचाने के लिए आगे आना होगा. इसके लिए सबसे प्रमुख उपाय वृक्षारोपण ही है.