ज्योतिरादित्य सिंधिया सूबे की सत्ता में भले ही किसी ओहदे पर नहीं हैं. सांसद का चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय या प्रदेश राजनीति में उनके पुनर्वास की अटकलें भी लगती रहीं हैं. लेकिन जब सूबे में कांग्रेस की सरकार हो तो उनका किसी ओहदे पर होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. यही वजह है कि करीब ढाई-तीनसौ बरस तक ग्वालियर पर राज करने वाले सिंधिया परिवार के मुखिया की स्थानीय प्रशासन में धमक अभी भी वैसी ही बरकरार है जब वे दिल्ली की सरकार में वजनदार महकमों के वजीर थे.
कल बुधवार के रोज महाराज ग्वालियर आए तो पूरा प्रशासन उनके समक्ष नतमस्तक था. महाराज के लिए कलेक्ट्रेट में खास तौर पर इंतजाम किया गया था जहां उन्होंने कलेक्टर, निगम कमिश्नर, जिला पंचायत के सीईओ और पुलिस कप्तान से ग्वालियर के विकासकार्यों का प्रजेन्टेशन समझा और इन अफसरों को अपने सुझाव भी साझा किए. खास बात यह है कि आला अफसर जब महाराज को प्रजेेंटेशन दिखा रहे थे, इस दौरान कमलनाथ सरकार के दो मंत्री प्रद्युम्नसिंह, इमरती देवी और दोनों विधायक मुन्नालाल गोयल व प्रवीण पाठक भी पूरे वक्त हाजिर रहे.
महाराज और कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने का हर मौका तलाश करने वाली भाजपा भला कब चूकती. अफसरों द्वारा महाराज को कलेक्ट्रेट में बुलाकर उन्हें अपना काम दिखाने एवं ग्वालियर के विकास पर उनका मार्गदर्शन लेने को संवैधानिक एवं प्रशासनिक परंपराओं के उलट बताया है. भाजपा के जिला मुखिया देवेश शर्मा ने तल्ख लहजे में मजम्मत करते हुए कहा है कि भाजपा पहले भी प्रशासन द्वारा स्थापित मर्यादाएं तोडऩे का विरोध करती रही है और आगे भी करती रहेगी.
अपने बचाव में प्रशासन ने भी तर्क तैयार कर लिए हैं. कहा जा रहा है कि यह बैठक सिंधिया ने नहीं बल्कि सूबे के वरिष्ठ मंत्री प्रद्युम्नसिंह ने बुलाई थी और हमने उन्हीं को प्रजेन्टेशन दिखाया था, चूंकि महाराज सत्ता के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रहने के अलावा ग्वालियर के गणमान्य नागरिक भी हैं, इसलिए उन्हें भी प्रजेन्टेशन देखने के लिए आमंत्रित किया गया था. वैसे ग्वालियर के भाजपा सांसद विवेक शेजवलकर और इस पार्टी के इकलौते विधायक भारत सिंह कुशवाह को भी न्यौता गया था लेकिन ये दोनों आए ही नहीं.
गोडसे के बहाने हिन्दू सभा तलाश रही खोई हुई जमीन
देश की आजादी के वक्त कौमी सियासत में जो पार्टियां अहम स्थान बनाए हुई थीं, उनमें हिन्दू महासभा भी थी और ग्वालियर इस पार्टी का गढ़ था. पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में तो हिन्दूसभा ने कांग्रेस को शिकस्त देकर इस अंचल में सीटें भी हथियाई थीं. ग्वालियर के सिंधिया परिवार के कांग्रेस में चले जाने के बाद हिन्दू महासभा भी यहां हाशिए पर चली गई. पिछले साल ग्वालियर में हिन्दू सभा के कार्यकर्ताओं ने ग्वालियर स्थित अपने दफ्तर में जब नाथूराम गोडसे की मूर्ति स्थापित कर धूमधाम से उसकी पूजा की तो देशभर में हल्ला मचा था. मूर्ति जब्त कर प्रशासन ने मालखाने में जमा करा दी है.
इस बार फिर से हिन्दू सभा ने गोडसे की फांसी की तारीख को उनका बलिदान दिवस के रूप में पेश कर उनकी तस्वीर की पूजा अर्चना, प्रशस्तिगान और पर्चे बांटने जैसे काम किए. इस बार भी प्रशासन ने सख्ती दिखाई और एक नेता पर आपत्तिजनक पर्चे बांटने का आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ कड़ी धाराओं में प्रकरण दर्ज कर लिया है. आंदोलन को धार देने के लिए हिन्दू सभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष राज्यश्री चौधरी न सिर्फ ग्वालियर आईं बल्कि केस वापस न लेने पर संसद का घेराव करने तक की चेतावनी दे गई हैं. हालांकि ग्वालियर में हिन्दू महासभा का जनाधार दौलतगंज तक सिमटकर रह गया है और प्रत्येक निगम चुनाव में इस पार्टी के सिर्फ एक-दो पार्षद ही जीतकर आते रहे हैं लेकिन पुलिस और प्रशासन ने इस पार्टी की धमकी को गंभीरता से लिया है.