क्रांति चतुर्वेदी
मध्यप्रदेश के मुख्ययमंत्री कमलनाथ की नवगठित कैबिनेट में एक साथ कई निशाने साधने की कोशिश की गई है. राजनीति के इन्द्रधनुष में मौजूद प्राय: सभी रंगों से इसे सजाने के प्रयास किए गए हैं. ‘सामंजस्य और संतुलन’ इस केबिनेट के अलंकार हैं और 2019 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों की स्पष्ट झलक के दीदार भी यहां किए जा सकते हैं. लेकिन कुछ ‘पट्टियों’ को प्रतिनिधित्व मिलने की अपेक्षाओं का अधूरा रह जाना भी यहां दिखाई दे रहा है!
कमलनाथ की कैबिनेट की सबसे बड़ी विशेषता अनुभव और नए चेहरों मिश्रण है. लेकिन इससे भी आगे जाकर यह कैबिनेट एक इतिहास रच रही है. पुराने हो या नए सभी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जा रहा है. अभी तक प्राय: यही परंपरा रही है कि नए नेताओं को राज्यमंत्री और पुराने तथा दिग्गज नेताओं को केबिनेट में स्थान दिया जाता रहा है. लेकिन इस नई परंपरा के सृजन के पीछे सबसे बड़ा लक्ष्य चार माह बाद होने जा रहे लोकसभा के चुनाव है. यह जाहिर है कि हर मंत्री को कैबिनेट का दर्जा देकर उन्हें अति सशक्त किया गया है. शक्ति देने में कृपणता नहीं बरतना- कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है.
लोकसभा के लिए मध्यप्रदेश में ज्यादा सीट हासिल करने के लिए यह जरूरी था कि जीते हुए नेताओं को ऊर्जा से सरोबार कर दिया जाए ताकि यह ताकत नीचे और वृहद स्तर तक कार्यकर्ताओं के नेटवर्क तक पहुँचे और नई ताकत के साथ कांग्रेस मैदान मारने की तैयारी कर सके. कांग्रेस के पास प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में से केवल 3 सीटें ही हैं. 28 सदस्यीय केबिनेट में से 17 नए चेहरों को शामिल कर कांग्रेस ने यह संदेश दिया है कि अनुभव की अपनी जगह तो है ही लेकिन नए नेताओं को बड़े मौके देने में भी कांग्रेस पीछे नहीं है. यह संदेश कार्यकर्ता स्तर तक लोकसभा चुनाव में नई ऊर्जा का कार्य करेगा.
मंत्री मण्डल गठन में कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं का शक्ति संतुलन भी किया गया है. स्वयं मु यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को पर्याप्त तवज्जो दी गई है. चुनाव पूर्व से मध्यप्रदेश में कांग्रेस- दिग्गजों के बीच शक्ति संतुलन के साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ी और अंतत: सरकार बनाने में कामयाब रही.
केबिनेट गठन में भी क्षत्रपों का संतुलन कायम रखा गया. सिंधिया स्वयं मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे थे लेकिन उनके समर्थकों की पर्याप्त सं या को कैबिनेट में लेकर कमलनाथ ने उदारता और द्वेष की राजनीति से ऊपर उठकर कार्य करने का संकेत दिया. यही भूमिका उन्होंने दिग्विजय के साथ भी अदा की. कांग्रेस के प्राय: सभी क्षत्रप इस बिंदु को अमल में ला रहे हैं कि कांग्रेस यदि एकजुट रही तो मध्यप्रदेश में चुनाव जीतना संभव है. आसन्न लोकसभा चुनाव के संदर्भ में मंत्री मण्डल का यह स्वरूप अहम भूमिका अदा करेगा.
नवगठित केबिनेट में राजनीति के दो और खास रंग जातीय और क्षेत्रीय संतुलन का भी ध्यान रखा गया है. एट्रोसिटी एक्ट और सपाक्स पार्टी के मैदान में कूदने के बाद निश्चित ही जातीय समीकरण पहले के मुकाबले और अहम बन गए हैं. इस केबिनेट में सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति, जन जाति और पिछड़ा वर्ग के चेहरों के बीच भी संतुलन बिठाने की कोशिश की गई है.
जैसा कि विदित है, मध्यप्रदेश अनेक क्षेत्रों में बंटा है. यहां जाति, क्षत्रप व अन्य राजनीतिक समीकरण भी विविधता लिए हुए हैं. इसलिए केबिनेट में सभी क्षेत्रों को साधना अत्यंत जरूरी है. इसी के मद्देनजर मालवा-निमाड़ से सबसे ज्यादा 9 मंत्रियों को नवाजा गया है. यह क्षेत्र मध्यप्रदेश की सत्ता की चाबी कहलाता है. यहां पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए 66 में से 34 सीटें जीती थी. इसी तरह ग्वालियर-चंबल से 5, महाकौशल से 4, बुंदेलखण्ड से 3, मध्यभारत से 6 मंत्री बनाए गए. विंध्य में कांग्रेस का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा.इसलिए यहां से केवल 1 ही को मंत्री बनाया गया. कांग्रेस यहां कुछ और नेताओं को मंत्री बनाकर लोकसभा चुनाव के संदर्भ में पार्टी के लिए और मजबूत आधार तैयार कर सकती थी.
इस मंत्री मण्डल की एक विशेषता और है. यहां कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की दूसरी पीढ़ी को भी स्थान दिया गया है. दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह, सुभाष यादव के बेटे सचिन यादव, सीताराम साधौ की पुत्री विजयलक्ष्मी, जमुनादेवी के भतीजे उमंग सिंघार, प्रतापसिंह बघेल के बेटे सुरेन्द्रसिंह बघेल, इंद्रजीत पटेल के पुत्र कमलेश्वर सिंह आदि शामिल हैं. सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निबाहने वाले निर्दलियों में से एक वारासिवनी के विधायक प्रदीप जायसवाल को भी मंत्री बनाकर संतुलन दर्शाया गया है.
जयस के नेता मनावर से विधायक डॉ. हीरा अलावा और सुवासरा से विधायक हरदीप सिंह डंग जो मीनाक्षी नटराजन समर्थित है, को केबिनेट में नहीं लेने पर इनकी नाराजगी जाहिर हुई है. इसी तरह मालवा की पूरी पट्टी नीमच मंदसौर, रतलाम, उज्जैन, झाबुआ और अलीराजपुर एक तरह से उपेक्षित ही रह गई. ऐसा मध्यप्रदेश के कुछ अन्य क्षेत्रों में भी हुआ है. हालांकि यह तो शुरूआत है, अभी तो कई नेताओं को, उपकृत करने के अनेकानेक अवसर अभी बाकी हैं…!