मध्यप्रदेश में अवैध रेत उत्खनन एक लंबे अर्से से भ्रष्टïाचार का बहुत बड़ा क्षेत्र और भारी अवैध कमाई का अड्डा बना हुआ है. इस पर रेत माफिया पूरी तौर पर काबिज है और बड़े उद्योग की तरह इसे भारी जेसीबी मशीनें व अन्य बड़ी मशीनें और हजारों ट्रक और ट्रेक्टरों के जरिये खुले आम चलाया जा रहा है. इस काले धंधे की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें माल मुफ्त का और केवल खुदाई, लदायी व ढुलाई का खर्च आता है. यह अरबों रुपयों का अवैध व्यापार धड़ल्ले से चल रहा है.
रेत उत्खनन की जगह नदियों के किनारे माफियाओं के बंदूकधारी दस्ते तैनात रहते हैं. सरकारी छापों के समय या तो उन्हें नकद रिश्वत देकर वापस कर दिया जाता है अन्यथा उन पर गोली चला दी जाती है या वाहनों से कुचल दिया जाता है. छापों के समय कलेक्टर और सुपरिटेन्डेंट पुलिस पर गोली चलायी गयी और जान बचाने के लिये उन्हें वापस होना पड़ा. इन लोगों के सामने खनिज विभाग के इंस्पेक्टर आदि की कोई हैसियत नहीं है.
अब यह भी जाहिर हो गया है कि मध्यप्रदेश में रोज करोड़ों रुपयों की अवैध रेत निकाली जाती है और लाखों रुपये की रिश्वत सरकारी लोगों को मिल रही है. इस रेत के धंधे में पुलिस का भ्रष्टïाचार व माफिया के संरक्षण सबसे ज्यादा नजर आता है. हाल ही मध्यप्रदेश सामान्य प्रशासन व सहकारिता मंत्री श्री गोविंद सिंह जो लहार-भिंड से विधायक हैं. उन्होंने यह स्वीकार किया है कि मध्यप्रदेश में रोज करोड़ों रुपये अवैध रेत निकाली जा रही है. लाखों की रिश्वत बंट रही है. इसमें शासन पंगु है और कुछ नहीं कर पा रहा है. उन्होंने कहा कि चुनाव के समय उन्होंने राज्य के मतदाताओं से कहा था कि कांग्रेस शासन आने पर रेत का अवैध व्यापार रोक दिया जायेगा.
लेकिन अब वे मानते हैं कि ऐसा नहीं हो पायेगा और शासन भी रेत माफिया और रेत के अवैध खनन व व्यापार में कुछ नहीं कर पायेगा. राज्य के मंत्री होते हुए भी वे असहाय महसूस करते हैं. नैतिकता के आधार पर श्री गोविन्द सिंह को प्रतिकार के रूप में मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे देना चाहिए. लेकिन श्री गोविन्द सिंह की इतनी स्पष्ट स्वीकारोक्ति से राज्य की राजनीति में भी रेत का भूचाल आ गया. कमलनाथ सरकार आत्म स्वीकारोक्ति व निन्दा की स्थिति में आ गई.
एक समय भाजपा के शासन काल में भिन्ड में अवैध रेत के कुछ ट्रक पकड़ कर थाने में रख दिए गए और जिसे भाजपा के जिला उपाध्यक्ष जिनकी वह रेत थी, थाने से पूरी दबंगई से अपने ट्रक लेकर चले गए और पुलिस कुछ नहीं कर पाई. रेत की स्थिति जैसी भाजपा शासन में थी वैसी ही अभी भी चल रही है. रेत माफिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस पार्टी की सरकार है. उनके पास रोज लाखों रुपए नेताओं, पुलिस व खनन विभाग के लोगों को देने के लिए तैयार रहते और गोली मारने के लिये बंदूकधारी दस्ते भी रहते हैं.
लेकिन श्री गोविंद सिंह के बयान से इतना तो हुआ कि रेत अब राजनैतिक द्वंद व राज्य सरकार की हैसियत और औकात का प्रश्न भी बन गया है. कुछ करना जरूरी हो गया है और कुछ किया भी गया है. रेत संकट में आ गये मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ सरकार ने तत्काल प्रभाव से पूरे मध्यप्रदेश में रेत भंडारण के सभी लाइसेंस निरस्त कर दिये और नयी रेत नीति जारी कर दी. इसके तहत अब समूह में रेत के ठेके दिये जायेंगे. कलेक्टर जिला व तहसील स्तर पर रेत खदानों का समूह तैयार करेंगे और भौगोलिक स्थिति और राजस्व सीमा के आधार पर रेत ठेके का प्रस्ताव देंगे.
इस नीति से यह तो संभव लगता है कि छोटे ठेकेदार रेत की चोरी नहीं कर सकेंगे लेकिन यह आशंका भी में होती है कि समूह के ठेकेदार रेत के दाम मनमाने तरीके से बढ़ा देंगे. राज्य सरकार को रेत का भाव भी तय करना चाहिए और इसका खुला रिकार्ड रखा जाए कि कितनी रेत कहां से निकली और उसे किसे बेचा गया. नयी नीति में यह प्रावधान अवश्य किया गया है कि रेत भंडारण के लिए लाइसेन्सी ठेकेदारों को भंडारित रेत की मात्रा की जानकारी सात दिन में कलेक्टर को देनी होगी.
जब तक नया ठेका नहीं दिया जाता तब तक रेत का नया भंडारण नहीं किया जा सकेगा. भंडारित रेत की बिक्री एक माह से लेकर तीन माह तक की जा सकेगी. सबसे बड़ा कदम यह उठाया गया है कि राज्य सरकार ने राज्य भर में सारे रेत स्टाक को बन्द कर दिया है और एक सप्ताह में रेत के सारे स्टाकों की जांच होगी. गड़बड़ी पाये जाने पर लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा.