खास बातें
- 6 बार कांग्रेस, 3 बार बसपा व 3 बार भाजपा प्रत्याशी बनें सांसद
- दृष्टि बाधित सांसद यमुना 1977 में बनेें सांसद
- 1989 के बाद कमजोर हुई कांग्रेस की स्थिति
डॉ. रविकान्त तिवारी
रीवा, भारत के स्वतंत्र होने के बाद देश में पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ. उसके बाद से लेकर वर्ष 2014 तक रिमही जनता ने राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशियों को चुनाव जिताकर जहां लोकसभा भेजा. वहीं निर्दलीय महाराजा मार्तण्ड सिंह को भी भारी मतों से विजयी बनाकर लोकसभा भेजने का काम किया. सबसे ज्यादा कांग्रेस पार्टी से चुने हुए सांसद सदन में पहुंचे. 6 बार कांग्रेस को जहां विजयी मिली, वहीं तीन बार बसपा और तीन बार भाजपा से सांसद चुने गये.
रीवा की जनता चुनाव में हमेशा नया इतिहास बनाती है. दृष्टि बाधित सांसद यमुना प्रसाद शास्त्री को 1977 में सांसद चुनकर लोकसभा में भेजने का काम रिमही जनता ने किया. तो वहीं बहुजन समाज पार्टी का प्रदेश से पहला सांसद 1991 में भीम सिंह पटेल को रीवा की जनता ने बनाया.
एक समय था जब रीवा संसदीय सीट कांग्रेस का गढ़ थी. लेकिन 1989 के बाद कांग्रेस की स्थिति कमजोर होती गई. 1991 और 96 में लगातार बसपा जीती, वर्ष 1996 का आम चुनाव रीवा संसदीय क्षेत्र के लिये वह पहला अवसर था जब चुनाव के मैदान में 76 सर्वाधिक उम्मीदवार थे. जिसमें से अधिकांश की जमानत जब्त हो गई थी और 1998 के मध्यावधि चुनाव में भाजपा ने रीवा सीट पर अपना कब्जा जमाया.
केन्द्र में जब सरकार गिरी और 1999 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के सुन्दरलाल तिवारी चुनाव जीत कर सदन पहुंचे. लेकिन दूसरी बार 2004 में भाजपा से हार गये. 2009 में बसपा से देवराज पटेल कांग्रेस के सुन्दरलाल तिवारी को 4,021 मतों से पराजित कर विजयी हुए.
2014 में मोदी लहर का जादू चला और भाजपा के जनार्दन मिश्रा सांसद बने. एक बार फिर कांग्रेस के सुन्दरलाल दूसरे पायदान पर रहे. अब वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है. भाजपा-कांग्रेस और बसपा तीनों ने अपनी मैदानी तैयारी शुरू कर दी है.
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है लेकिन रीवा जिले की आठों विधानसभा सीट में कांग्रेस की करारी हार हुई है. फिर भी यह संसदीय सीट तीनों पार्टियों के लिये एक चुनौती भरी सीट साबित होगी.
रीवा की जनता ने निर्दलीय को भी जिताया: रिमही जनता हमेशा चाहे विधानसभा हो या लोकसभा चुनाव कुछ नया करती है. रीवा स्टेट के तत्कालीन महाराजा मार्तण्ड सिंह को दो बार निर्दलीय चुनाव जिताकर लोकसभा भेजने का काम किया था और एक बार कांग्रेस पार्टी से चुनाव रीवा की जनता ने जिताया था.
इतिहास के पन्नो पर नजर डालें तो 1971 के आम चुनाव में रीवा के महाराजा मार्तण्ड सिंह पहली बार चुनाव के मैदान में उतरे थे और रिमही जनता ने उन्हें हाथों हाथ लिया और 2,59,136 मत प्राप्त कर महाराजा मार्तण्ड सिंह विजयी हुए थे और दूसरी बार 1977 के जनता लहर में महाराजा मार्तण्ड सिंह निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.
हालांकि 1980 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में फिर से चुनाव जीते थे और 1984 में कांग्रेस पार्टी के टिकट से चुनाव जीत कर महाराजा मार्तण्ड सिंह लोकसभा पहुंचे थे.