इंदौर. पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वयोवृध्द नेता कैलाश जोशी के निधन से मालवा-निमाड़ के संघ परिवार में शोक की लहर छा जाना स्वाभाविक है. उन्हें प्रदेश की राजनीति में संत कहा जाता था. राजनीतिक विरोधी भी उनकी सरलता और सादगी के कायल थे. प्रदेश भाजपा के पितृ पुरूष स्व.कुशाभाऊ ठाकरे और संगठन महर्षी कहे गए स्व.प्यारेलाल खंडेलवाल के बाद संघ परिवार विशेषकर जनसंघ और भाजपा में किसी का सर्वाधिक आदर था तो वे कैलाश जोशी ही थे. वे 1962 से 1998 तक लगातार बागली के विधायक रहे.
एक ही सीट से लगातार 8 बार चुने जाने का जो रिकार्ड स्व.जोशी ने बनाया उसका आजाद भारत के इतिहास में दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता. कांग्रेस नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे हरिदेव जोशी, उनसे अधिक बार विधायक रहे, लेकिन वे एक ही सीट से नहीं चुने जाते थे. भाजपा के अन्य नेता सुंदरलाल पटवा भी का भी संसदीय जीवन लंबा रहा है, लेकिन वे अपनी सीट बदलते रहे हैं. स्व.पटवा 1957 में मनासा से विधायक बने थे, लेकिन बाद में वे सीहोर और भोजपुर से भी विधायक बने. स्व.जोशी को सार्वजनिक जीवन में लाने का श्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह रहे स्व.मोरोपंत पिंगले को जाता है.
संघ के संस्थापक डा.केशव बलिराम हेडगेवार की प्रेरणा से संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बने स्व.पिंगले 50 और 60 के दशक में विदर्भ और मध्यभारत प्रांत के प्रांत प्रचारक थे. उन्होंने स्व.जोशी को जनसंघ में सक्रिय किया. स्व.कैलाश जोशी उन थोड़े से नेताओं में से एक थे, जिन्होंने मप्र में जनसंघ की स्थापना की थी. वे 55 से 60 तक प्रदेश जनसंघ के मंत्री रहे हैं. उन दिनों स्व.दत्तोपंत ठेंगडी मप्र जनसंग के प्रांतीय संगठन मंत्री और स्व.कुशाभाऊ ठाकरे सह संगठन मंत्री थे. 1977 में जब जनता पार्टी को बहुमत मिला तो कैलाश जोशी को मुख्यमंत्री बनाया गया.
हालांकि वे 6 माह ही मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उस दौरान भी उनकी सादगी और सरलता देखकर प्रशासनिक अधिकारियों कोविश्वास नहीं होता था कि राजनीति में स्व.जोशी जैसा संत प्रवृति का नेता भी हो सकता है. प्रदेश के मुख्यसचिव रहे स्व.महेश नीलकंठ बुच और इसी पद पर रही उनकी पत्नी निर्मला बुच ने अनेक बार स्व.जोशी की सादगी, ईमानदारी और सरलता की सार्वजनिक तौर पर प्रशंसा की है.
प्रदेश भाजपा के तीन बार अध्यक्ष और दो बार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे. बागली में उनके प्रति श्रध्दा का यह आलम था कि 1998 में जब वे कांग्रेस के श्याम होलानी से हारे तो क्षेत्र की आदिवासी जनता को यकीन नहीं हुआ कि वे हार गए हैं. परिसीमन के बाद यह सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित हो गई, लेकिन 1998 का अपवाद छोड़ दिया जाय तो स्व.जोशी के प्रभाव के कारण ही भाजपा बागली से आज तक हारी नहीं है. मालवा-निमाड़ के आदिवासियों में जनसंघ की जड़े मजबूत करने में खरगोन के पूर्व सांसद स्व.रामचंद्र बडे के साथ ही कैलाश जोशी का भी महत्वपूर्ण योगदान है.
स्व.जोशी की सीट बागली लंबे समय तक खंडवा लोकसभा में रही हैं, जबकि उनकी पड़ौसी सीट कन्नोद भोपाल संसदीय क्षेत्र का हिस्सा थी. खातेगांव-कन्नोद, हाटपिपल्या और बागली की सीटें भाजपा का गढ़ बनी तो उसका कारण स्व.जोशी की छवि और लोकप्रियता ही रही है. वे भोपाल से दो बार सांसद और एक बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं. उनके निधन से मालवा-निमाड़ में संघ परिवार का ऐसा नेता चला गया जिन्हें हजारों कार्यकर्ता अपना प्रेरणा केंद्र मानते थे.