(ग्वालियर-चंबल डायरी)
हरीश दुबे
खास बातें
- कांग्रेसजनों में जोश भरने के साथ भाजपा की तैयारियों की भी टोह
- आलाकमान के विश्वस्त और ‘महाराज’ के नजदीकी हैं सिंघार
- चुनौतीपूर्ण है नए प्रभारी मंत्री का लक्ष्य
- ग्वालियर से चुनाव लड़ सकती हैं यशोधरा
लोकसभा चुनाव की तैयारियों मद्देनजर पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने जिले के प्रभारी मंत्री उमंग सिंघार पिछले दिनों ग्वालियर दौरे पर थे, इस दौरान उन्होंने कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने का टिप्स देने के साथ ही कई कांग्रेसी नेताओं के घर पहुंचे और चुनावी तैयारियों की जानकारी ली. इसके बाद जिला योजना समिति की बैठक में तीखी तेवर दिखाते हुए अफसरों की जमकर क्लास ली.
गौरतलब है कि धार जिले की गंधवानी सीट से लगातार तीसरी मर्तबा जीतकर विधानसभा में पहुंचे उमंग सिंघार का ग्वालियर की सियासत से कोई खास वास्ता नहीं है लेकिन ‘महाराज’ व कांग्रेस आलाकमान से नजदीकियों के कारण उन्हें ग्वालियर जिले की जिम्मेदारी दी गई है. दौरे के दौरान उमंग सिंघार सिंधिया के प्रति अपनी निकटता को छिपाने में परहेज नहीं किया. इस दौरान वे न सिर्फ सिंधिया समर्थकों से घिरे रहे, बल्कि अम्मा महाराज की छत्री पर जाकर माधव राव की समाधि पर नमन भी किया.
1990 में शुरू किया था राजनीतिक सफर: उमंग सिंघार राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं. सन् 1990 में युवक कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक सफ र का आगाज करने के बाद वे करीब पांच वर्ष तक भोपाल जिला युवक कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे, लिहाजा युवक कांग्रेस के माध्यम से कांग्रेस से जुडऩे वाले ग्वालियर के पुराने कांग्रेस नेताओं से उनके पुराने ताल्लुक हैं.
अपने इस दौरे में उन्होंने सुनील शर्मा से लेकर आशीष प्रताप राठौड़ जैसे कांग्रेस नेताओं से उनके घर जाकर मुलाकात की बल्कि हर कार्यकर्ता की सुझाव और शिकायत को पूरी शिद्दत से सुना. कांग्रेस भवन पर भी उनका यही संवेदनशील रूख देखने को मिला.
कांग्रेस को जीत दिलाने की चुनौती: भाजपा के पंद्रह वर्ष के राज में ग्वालियर का प्रभार जयंत मलैया से लेकर गौरीशंकर बिसेन जैसे वरिष्ठ मंत्रियों के हाथों में रहा लिहाजा कमलनाथ की पारी शुरू होने के साथ ही जब ग्वालियर का प्रभारी मंत्री बनाए जाने का सवाल उठा तो ऐसे कैबिनेट मंत्रियों के नामों पर विचार हुआ जो वरिष्ठता के मापदंड पर तो खरा उतरता ही हो, ‘महाराज’ की गुडबुक में भी हो. इन अपेक्षाओं पर उमंग सिंघार फिट बैठे और उन्हें ग्वालियर का प्रभारी मंत्री बनाया गया.
प्रभारी मंत्री के समक्ष फि लहाल सर्वाधिक बड़ी चुनौती लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को ग्वालियर सीट पर विजयश्री दिलाना है, हालांकि खुद चुनाव लडऩे अथवा किसी अन्य कांग्रेस नेता को चुनाव मैदान में उतारने का निर्णय तो स्वयं ‘महाराज’ ही करेंगे लेकिन ग्वालियर में चुनाव से पहले और चुनाव के वक्त कांग्रेस के लिए फील्डिंग जमाने की अहम जिम्मेदारी प्रभारी मंत्री के सिर है. चूंकि ग्वालियर सीट पर कांग्रेस लगातार तीन बार से चुनाव हार रही है, लिहाजा प्रभारी मंत्री का काम कुछ ज्यादा गहन व चुनौतीपूर्ण हो गया है.
स्थानीय नेताओं को मिलेगी तरजीह: लगे हाथ भिण्ड के नेताओं ने अकील से दरख्वास्त कर दी कि संसदीय चुनाव में भिण्ड के निवासी को ही टिकट में तरजीह मिले. अकील ने इस पर अपनी सौ फीसदी सहमति देते हुए साफ कहा कि भिण्ड के लोकल व्यक्ति को ही कांग्रेस का टिकट मिलेगा. अन्य जिलों से यहां पर दावेदारी कर रहे नेताओं के लिए मन मसोस कर बैठ जाने के सिवा अब कोई चारा नहीं है.
हालांकि दिग्विजय सरकार में गृह मंत्री रह चुके महेन्द्र बौद्ध और कमलापत आर्य के लिए अभी उम्मीद की किरण बाकी है क्योंकि इनके विधानसभा क्षेत्र भिण्ड संसदीय सीट के दायरे में ही आते हैं. इन दोनों के नाम पैनल में भी बताए गए हैं.
यशोधरा राजे की सक्रियता के मायने…
सिंधिया परिवार भले ही राजमाता सिंधिया के समय से भाजपा एवं कांग्रेस के खेमों में बंटा हुआ है लेकिन तमाम राजनीतिक मतभेदों के बावजूद इस परिवार के सदस्यों में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरने की परंपरा नहीं रही है.
यदि ज्योतिरादित्य इस बार भी गुना से ही चुनाव लड़े तो ग्वालियर सीट से भाजपा द्वारा यशोधरा राजे को प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना प्रबल हो जाएगी.राजमाता विजयाराजे की पुण्यतिथि पर छत्री में आयोजित पुष्पांजलि सभा में यशोधरा राजे ने अप्रत्यक्ष तौर पर इसके संकेत भी दे दिए.
यशोधरा ने खुद छत्री से ही भाजपा के स्थानीय बड़े नेताओं को फोनकर उन्हें पुष्पांजलि सभा में आने के लिए कहा बल्कि भाजपा छोड़ चुकीं पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता से पार्टी में वापस लौट आने के लिए भी कहा. राजनीतिक हलकों में इसे यशोधरा राजे के ग्वालियर से चुनाव लडऩे की तैयारियों का संकेत माना जा रहा है. यशोधरा 2007 एवं 2009 में ग्वालियर से सांसद रह चुकी हैं.
मंत्री ने खुद ही हटवा दिए स्वागत में लगे होर्डिंग
कोई नेता मंत्री बनने के बाद पहली बार शहर में आए और अपने स्वागत के लिए लगे होर्डिंग और बैनर खुद ही हटवा दे, ऐसा पहली बार देखने को मिला. नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह ने यही किया. वे कमलनाथ की काबीना में ग्वालियर संभाग का ही प्रतिनिधित्व करते हैं, लिहाजा जब मंत्री बनने के बाद पहली दफ ा ग्वालियर आए तो उनके समर्थकों ने शहर को होर्डिंग, बैनरों से पाट दिया.
समर्थकों को उम्मीद थी कि मंत्रीजी खुश होंगे, लेकिन हो गया उल्टा. शहर में आते ही अपने स्वागत में लगे होर्डिंग, बैनर व वंदनवार देखकर वे नाराज हो गए, तत्काल ही निगम कमिश्नर को तलब कर उन्होंने अपने स्वागत में लगे सारे होर्डिंग हटाने का हुक्म दे दिया.
निगम अमला पहले तो असमंजस में रहा लेकिन फौरन ही उनके हुक्म की तामीली कर दी गई. समर्थकों को भले ही निराशा हुई लेकिन जयवर्धन सिंह अन्य नेताओं को जरूर सबक दे गए कि होर्डिंग और स्वागतद्वार बनाने में धन फूंकने के बजाए यह राशि जनकल्याण के कार्यों में खर्च की जाए तो ज्यादा मुफ ीद रहेगा.
…और अकील ने इनकी उम्मीदों पर पानी फेरा
अंचल की एकमात्र आरक्षित संसदीय सीट भिण्ड पर कांग्रेस के टिकट के लिए अभी तक ग्वालियर के बारेलाल जाटव, प्रभूदयाल जौहरे, गोपीलाल भारतीय, दतिया से पूर्व गृह मंत्री महेन्द्र बौद्ध, कमलापत आर्य, मुरैना के पूर्व सांसद बाबूलाल सोलंकी और डबरा से मंत्री बनीं इमरतीदेवी सुमन जैसे वरिष्ठ दलित नेताओं के नाम उछलते रहे हैं, लेकिन इन सभी नेताओं की दावेदारियों पर भिण्ड जिले के प्रभारी मंत्री आरिफ अकील के एक बयान ने पानी फेर दिया है. प्रभारी मंत्री बनने के बाद सोमवार को जब पहली मर्तबा आरिफ अकील भिण्ड आए तो सांसदी के टिकट की चाह में स्वागत-इस्तकबाल के बहाने उनके समक्ष जमकर शक्ति प्रदर्शन हुआ.