क्रांति चतुर्वेदी
मध्यप्रदेश की कांग्रेस राजनीति में अपना अहम स्थान रखने वाले नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव – दोनों को खुशी है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है, लेकिन एक गम भी है कि वे दोनों विधानसभा में नहीं पहुँच सके है. शायद इसी टीस की वजह से आज जब अरुण यादव, अजयसिंह से मिलने पहुँचे तो अपने आँसू रोक नहीं सके !
कांग्रेस की सरकार बनने पर यह तय माना जा रहा था कि भले ही दूसरी पंक्ति में लेकिन अजयसिंह और अरुण यादव निश्चित ही अहम स्थान हासिल करेंगे लेकिन विधानसभा सीट ही हारने के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है. हालांकि ऐसा कुछ और नेताओं के साथ भी हुआ लेकिन पिछले कुछ सालों से बतौर नेता प्रतिपक्ष और बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष – अजयसिंह और अरुण यादव की जोड़ी कांग्रेस को अपने – अपने स्तर पर राज्य में सक्रिय रखे हुए थी.
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव को हाईप्रोफाइल बनाते हुए, चुनाव किसी भी कीमत पर जीतने की राणनीति के तहत त्रिमूर्ति फार्मूले पर अमल किया. कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान की कमान दी और दिग्विजय को समन्वय का जिम्मा सौंपा. निश्चित रूप से इसी त्रिमूर्ति के नेतृत्व ने कांग्रेस को सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा ही दिया.
इस दौरान अजयसिंह चुरहट से और अरुण यादव बुधनी से शिवराज के खिलाफ मैदान में उतरे और इस चुनाव को चर्चित भी किया. आज अजयसिंह के लिए उनके प्रभाव क्षेत्र के विधायकों के अलावा दिग्विजय सिंह के छोटे भाई चाचोड़ा से लक्ष्मण सिंह, गाडरवाड़ा से सुनीता पटेल, बुरहानपुर से सुरेंद्र सिंह, चित्रकुट से निलांशु चतुर्वेदी व कुछ अन्य ने भी अपनी सीट छोडऩे की पेशकश की है. वर्तमान दौर की राजनीति में इसे एक अच्छा संकेत कहा जा सकता है.
दरअसल यहाँ यह बिंदु भी गौर करने लायक है कि इन दोनों के पिता अर्जुन सिंह और सुभाष यादव का मध्यप्रदेश की राजनीति में अहम स्थान रहा है. अजयसिंह ने तो आज मीडिया के सवालों के जवाब में कहा भी कि मेरे लिए व्यक्तिगत कुछ नहीं रहा. मैंने बड़ा पिक्चर देखा था – प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने, और उसमें मैं सफल रहा. ऐसा कहकर उन्होंने इशारों में यह संकेत दे दिया कि प्रदेश में सक्रियता के चलते मैं अपनी सीट की ओर ध्यान नहीं दे पाया.
प्रदेश में चुनाव से सात माह पहले तक अजयसिंह और अरुण यादव की जोड़ी अपने स्तर पर जमीन पर कांग्रेस को सक्रिय रखने की कोशिश भी करती रही. इस दौरान हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को विजय दिलाकर क्षेत्रवार कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की दिशा में काम भी किया.
झाबुआ – रतलाम संसदीय सीट पर उपचुनाव में कभी अर्जुनसिंह के कट्टर समर्थक माने जाने वाले कांतिलाल भूरिया चुनाव जीते. इसी तरह अटेर, चित्रकुट, कोलारस और मुंगलाई विधानसभा सीटों पर भाजपा सरकार द्वारा पूरी ताकत झोकने के बाद भी कांग्रेस को विजय मिली. शायद यही सब वजह रही कि मध्यप्रदेश में सत्ता के गलियारों में कांग्रेस के आने के बाद, खुद नहीं आने की टीस मन में उठी और अरुण यादव, अजयसिंह से मिलने पर रो पड़े.